पिंकी जैन's Album: Wall Photos

Photo 31,054 of 35,294 in Wall Photos

ओशो...

पुराणों में कथा है देवशर्मा नाम के एक ब्राह्मण थे, और उसकी पत्नी थी सुधर्मी। देवशर्मा पुत्रविहीन थे। उन्होंने बहुत तपश्चर्या की, बहुत योग साधा, बहुत ध्यान किया, फलस्वरूप देवता उन पर प्रसन्न हुए; और जब देवता प्रगट हुआ तो देवशर्मा ने पुत्र मांगा। पुत्र पैदा हुआ,

वरदान फला। लेकिन पुत्र अंधा था। मां—बाप बहुत दुखी हुए। बुढ़ापे में मिला भी बेटा तो अंधा। जीवनभर इसी बेटे के लिए प्रार्थनाएं कीं, पूजाएं कीं, तप किया, योग किया, जो भी कर सकते थे किया; तीर्थ गए, सब किया और मिला अंधा! पर अब तो कोई उपाय न था।

इस अंधे बेटे को बडा किया, गुरुकुल भेजा। कुछ थोडा—बहुत पढ़—लिखकर बेटा वापस लौटा। जब अंधा बेटा गुरुकुल से वापस आया, तो उसने अपने पिता से पूछा कि क्या आप अभी अंधे हैं? क्योंकि अंधे पिता के बिना अंधा पुत्र कैसे हो सकता है? देवशर्मा तो बहुत हैरान हुआ।

उसने कहा कि नहीं बेटे, मैं अंधा नहीं हूं न तेरी मां अंधी है; हम आख वाले हैं, मगर किसी कर्म का फल होगा कि हमें अंधा बेटा मिला। लेकिन बेटे ने कहा, नहीं, आप अंधे हैं और मेरी मां भी अंधी है।

बाप ने पूछा, तेरा मतलब क्या? तो बेटे ने कहा, मेरा मतलब यह है कि जीवनभर कठिन तपश्चर्या करके मांगा भी तो पुत्र मांगा। अंधे हो। जीवनभर तपश्चर्या करके जब देवता प्रगट हुआ तो मांगा भी तो पुत्र मांगा, तुम अंधे हो। इसलिए तो मैं अंधा हुआ।

तुम संन्यास से भी सुख ही मांगते हो—वही सुख जो संसार से मांगते थक गए हो और नहीं मिला। संन्यास से शांति मांगो, सुख नहीं। शाति मिलती है, शांति की छाया की तरह सुख चला आता है। तुमने जगत में सुख मांगा अब तक, सुख की छाया की तरह अशांति मिलती है।

इस सूत्र को खयाल रखना, यह फिर एक विरोधाभास। सुख मांगो, अशांति मिलती है; शाति मांगो, सुख मिलता है।

एस धम्मो सनंतनो-(ओशो)-प्रवचन-097