पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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प्रश्न :कोई पचास लाख से भी ज्यादा साधु-संत है भारत में! इनमें से कितने बुद्धत्व को उपलब्ध हुए हैं?

उत्तर
यह एक भीड़ है! भिखारियों की, चालबाजों की, बेईमानों की, पाखंडियों की, धोखेबाजों की; यह भीड़ है, जो तुम्हें सदियों-सदियों से चूस रही है। इस भीड़ में किसके भीतर का दीया जला है? इस भीड़ में किसको परमात्मा के दर्शन हुए हैं? यह भीड़ उधार की बातों को, सदियों पहले लिखे गये शास्त्रों को, तोते की तरह दोहराए चली जा रही है। लेकिन इन अंधों की बातें तुम्हें जंचती हैं, क्योंकि तुम भी अंधे हो! ये अंधे तुम्हारी ही भाषा में बोलते हैं; इसलिए बातें जंचती हैं, समझ में आती हैं।

बुद्धों के वचन तुम्हारी पकड़ के बाहर हो जाते हैं, क्योंकि बुद्धों के वचन समझने के पहले तुम्हें किसी क्रांति से गुजरना पडेगा! बुद्धों के वचन समझने के पहले तुम्हें अपनी प्रतिभा पर धार लानी होगी! तुम्हें अपने भीतर ध्यान का दीया जलाना होगा। तुम्हारे भीतर भी कुछ बुद्धत्व की लहर उठे तो तुम्हारा बुद्धों से नाता बने; नहीं तो तुम बुद्धुओं के चक्कर में ही पड़े रहोगे।
तुमने बार-बार सुना होगा पंडितों को, पुरोहितों को कहते हुए, कि 'संसार स्वप्न है' मैं तुमसे कहना चाहता हूँ 'स्वप्न संसार' है! तुम्हारे भीतर जो स्वप्नों का जाल है वही संसार है। उसे छोड़ना होगा! ये बाहर बोलते हुए पक्षी तो फिर भी बोलेंगे, ऐसे ही बोलेंगे, और भी मधुर बोलेंगे। इनके कंठों में और भी संगीत आ जाएगा, क्योंकि तुम्हारे पास सुनने वाले कान होंगे। और जिसके पास सुनने वाले कान हैं, उससे पत्थर भी बोलने लगते हैं। ये वृक्ष तो ऐसे ही हरे होंगे, और हरे हो जाएंगे। क्योंकि जिसके पास देखने वाली आंख है उसके लिए रंगों में रंग, गहराइयों में गहराइयां, अरूप में भी रूप दिखाई पड़ने लगता है। यह संसार जो तुम्हारे बाहर फैला हुआ है, यह तो और मधुर, और प्रीतिकर होकर प्रकट होगा।

काश, तुम जाग जाओ! तुम सोए हो तो भी यह मधुर है और प्रीतिकर है। तुम जाग जाओ तब तो अकूत खजाना है! साम्राज्य है परमात्मा का!!

ओशो
'काहे होत अधीर'