पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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आत्मचिंतन : थोड़े दिन पहले मेने फेसबुक पर एक जिज्ञासु जिव की पोस्ट पढ़ी और पोस्ट पढ़ने के बाद मेरे अंदर बहोत समय चिंतन मनन चला क्योकि वो पोस्टमें हमारे सभी के प्रिय परोमपकारी पूज्य श्री सदगुरुदेव श्री कानजी स्वामी के अनमोल वचनामृत थे । वो वचनामृत इतने अनमोल है की सिर्फ यही वचनामृत पर गहरा चिंतन मनन और घोलन कर अगर जिव शुक्ष्म उपयोग करे तो एक ही समय की पर्याय में कार्य हो जाय और भव का अभाव हो जाय । बहोत चिंतन करने पर लगा की हम सिर्फ ज्ञान बढ़ाते है किन्तु हमारा उपयोग अन्तर्मुख नही हो तो वो वचनामृतकी या सद्गुरुकी बात हमने एकाग्रता से सुनी ही नही और अपने स्वछन्द से वर्ते ऐसा कहा जा सकता है । कहने का मतलब ये है की सद्गुरु के वचनामृत के मर्म को नही समजा तो हमने सद्गुरु की आज्ञा का पालन भी नही किया ऐसा ही कहा जा सकता है । थोड़े दिन पहले एक विद्वान् से चर्चा हुयी की पूज्य श्री गुरुदेवने 45 years आध्यत्म का उपदेश दिया लेकिन बहोत कम जिव आत्मसात कर पाये क्योकि सद्गुरु तो सबको एक सरीखा उपदेश देते है पर कौन कैसा और किस दिशा में पुरुषार्थ करता है वो तो जिव की योग्यता और पात्रता पर निर्भर है । पूज्य निहालचंद सोगणिजीको तो पूज्य श्री के प्रवचन सुनते ही स्वरुप की प्राप्ति हो गयी थी इसलिए वो जरुरी नही की बहोत शास्त्राभ्यास करने से ही प्राप्ति होती है , प्राप्ति तो ज्ञायक स्वभाव के आश्रय से एक समय की पर्याय में हो सकती है और उस समय 5 समवाय भी सहज मिलते ही है । सद्गुरु के एक एक वचन में अनंत आगम समाये है इसलिए ही जो बात तीर्थंकरों की वाणी में आती है वो ही बात सद्गुरु के वचनमे आती है और सद्गुरु वो ही बात कहते है जो तीर्थंकरों की वाणी में होती है । सच तो यह है की जिसे हम सद्गुरु मानते है उनके वचनो पर अटूट श्रद्धा नही होती और वो श्रद्धा का अभाव होने के कारण जीवको स्वरुप की प्राप्ति अभी तक नही हुआ। जिस समय हम सद्गुरु के एक एक वचन को श्रद्धा में लेकर रूचि आत्मा की रखकर उपयोग को शुक्ष्म करे तो एक समय मात्र में हमें आत्मा की अनुभूति हो जाय इतना सामर्थ्य सद्गुरु के एक वचन में होता है । उसके लिए शास्त्र अधिक पढ़ने की जरुरत नही है । सद्गुरु के 10 अमृत वचन से भी हमें अनुभूति हो सकती है जब हम अपने उपयोग को स्थिर करे और अन्तर्मुख होने के लिए स्वभाव की ओर परिणति ढले तो कार्य होगा ही और जब कार्य होगा तब ही कहा जा सकता है की हम सद्गुरु के बताये मार्ग पर चले । सद्गुरु तो मुक्ति का सही और सरल मार्ग दिखाया किन्तु चलना तो पड़ेगा हम जीवो को ही तभी हम भी वीतराग स्वरुप प्रगट कर सकते है । हम सभी सद्गुरु श्री कानजीस्वामी के बताये पथ पर चलकर पर्याय में पूर्ण शुध्दता प्रगट कर कारण परमात्मा से कार्य परमात्मा बनने का पुरुषार्थ कर अनंत शास्वत सुख की अनुभूति कर ये पर्याय सार्थक बनाये यही अंतिम ध्येय भी होना चाहिए । - मोहिनी गांधी