पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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सारी दुनिया में स्त्रियां बड़ी एड़ी का जूता पहनती हैं । वह सिर्फ पुरुष की ऊंचाई पाने की चेष्टा है । उससे बड़ा कष्ट होता है , क्योंकि चलने में वह आरामदेह नहीं है । जितनी ऊंची एड़ी हो , उतनी ही कष्टपूर्ण हो जाएगी । लेकिन फिर धीरे - धीरे उसी कष्ट की आदत हो जाती है । फिर हड्डियां वैसी ही जकड़ जाती हैं ; फिर सीधे पैर से जमीन पर चलना मुश्किल हो जाता है । लेकिन स्त्री के मन में थोड़ासा संकोच है । पुरुष से थोड़ी उसकी ऊंचाई कम है । पूरब की स्त्रियों ने इतनी फिक्र नहीं की ऊंची एड़ी के जूतों की । क्योंकि उनमें अभी भी पुरुष के साथ बहुत प्रतिस्पर्धा नहीं है । लेकिन पश्चिम में भारी प्रतिस्पर्धा है ।

दूसरा बड़ा है , उससे कष्ट शुरू होता है । लेकिन कष्ट की क्या बात है ! आप छ: फीट के हैं , मैं पांच फीट का हूं । न तो एक फीट बड़े होने से कोई बड़ा होता है , न एक फीट छोटे होने से कोई छोटा होता है । कि आप बहुत अच्छा गा सकते हैं , मैं नहीं गा सकता हूं । तो अड़चन कहां खड़ी होती है !

यह सब मुझमें भी होना चाहिए । यह मेरा अहंकार मान नहीं सकता कि कुछ है , जो मुझमें कम है । फिर जीवन में अनुभव होता है , बहुत कम है । तो हीनता आती है , आत्म - अविश्वास आता है । फिर इससे दूर होने के लिए हम उपाय करते हैं और एड़ियों वाले जूते पहनते हैं , उनसे और कष्ट पैदा होता है , और सारा जीवन विकृत हो जाता है ।

इन सारे रोगों से मुक्त होने का एक ही उपाय है , आप जैसे हैं , वैसे अपने को स्वीकार करें । आपके पास दो आंखें हैं , तो आपने स्वीकार किया । आंखों का रंग काला है या हरा है , तो आपने स्वीकार किया । किसी की नाक लंबी है , किसी की छोटी है , तो उसने स्वीकार किया । ये तथ्य हैं ; उन्हें स्वीकार कर लें कि ऐसा मैं हूं । और जो मैं हूं इस मेरी स्थिति से क्या उपलब्धि हो सकती है , उसकी चेष्टा , उस पर सृजनात्मक श्रम । लेकिन दूसरे से स्पर्धा हो , तो आप पागल हो जाएंगे । और करीब - करीब सारे लोग पागल हो गए हैं । स्पर्धा विक्षिप्तता लाती है । और ऐसा तो कभी भी नहीं होगा.....।

~ ओशो ~