पिंकी जैन's Album: Wall Photos

Photo 31,021 of 35,029 in Wall Photos

हमारे चारों तरफ बहुत कुछ मौजूद है। हम जो पकड़ पाते हैं वही पकड़ जाता है, जो नहीं पकड़ पाते वह छूट जाता है। और हम वही पकड़ते हैं, जिस तल पर, जिस वेवलेंथ पर, जिस टयूनिंग पर हमारा चक्र काम करता है। फिर हमें वही पकड़ में आना शुरू हो जाता है, वही हमें दिखाई पड़ने लगता है, वही हमें सुनाई पड़ने लगता है, वही हमें चारों तरफ से घेरना शुरू कर देता है।

यह जो चारों तरफ विचार का अनंत जाल है।...ध्यान रहे कि कोई भी शब्द कभी मरता नहीं। इस जगत में कोई भी चीज कभी नहीं मरती। अभी मैं जो बोल रहा हूं, यह कभी नहीं मरेगा अब, इसके मरने का कोई भी उपाय नहीं है। यह जो बोला गया, वह सनातन और शाश्वत हो गया। अनंत काल तक उसकी प्रतिध्वनि इस सारे ब्रह्मांड में घूमती रहेगी, घूमती रहेगी,घूमती रहेगी। वह कभी समाप्त नहीं होगी। जो प्रतिध्वनि पैदा हो गई है, वह गूंजती ही रहेगी अनंत काल तक, अनंत-अनंत लोकों में उसकी गूंज पैदा होती रहेगी।

इस बात की बहुत संभावना वैज्ञानिक मानते हैं कि किसी दिन वे ऐसे यंत्र भी ईजाद कर सकेंगे, जिसमें कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में जो कहा हो, वह पकड़ा जा सके। इस बात की बहुत संभावना है कि जीसस ने जो कहा हो, वह पकड़ा जा सके। महावीर ने जो कहा हो बिहार में, वह पकड़ा जा सके। क्योंकि वह ध्वनि आज भी कहीं न कहीं गूंजती होगी।

लेकिन वैज्ञानिक वह यंत्र किसी दिन तैयार कर पाएं या न कर पाएं, वह दूर की बात है। लेकिन जो सातवें केंद्र को सक्रिय करने में सक्षम हो जाते हैं, वे बिना किसी यंत्र के आज भी जगत में जो भी श्रेष्ठ विचार कभी जन्मे हैं, उनको पकड़ने में समर्थ हो जाते हैं। जो भी श्रेष्ठ जगत की संपदा है तरंगों की, वे उसे पकड़ने में समर्थ हो जाते हैं। उन तरंगों में जीना एक अनुभव ही दूसरा है।

नीत्शे ने कहा है कि एक क्षण ऐसा हुआ कि मुझे लगा कि मैं हजारों मील समय के ऊपर खड़े होकर जी रहा हूं।

हजारों मील समय के ऊपर? समय के ऊपर कोई हजारों मील कैसे खड़ा हो सकता है? जिन लोगों को भी उस तल पर थोड़ा सा अनुभव होगा, उनको लगेगा कि सारी दुनिया किसी खाई में, किसी खंदक में, किसी घाटी में भटकी रह गई है और हम किसी एवरेस्ट पर खड़े होकर जी रहे हैं।

वह जो ऊंचाई पर खड़े होने का अनुभव है, वह जो ऊंचाई पर जीने का अनुभव है, वह जो अंतिम हमारा ऊंचे से ऊंचा चक्र है उसके सक्रिय होने से शुरू होता है। वह चक्र सक्रिय हो सकता है। वह चक्र कैसे सक्रिय हो सकता है? उस चक्र के सक्रिय हुए बिना अंतस-जीवन में, सत्य जीवन में, प्रभु के मंदिर में कोई प्रवेश नहीं है। वह चक्र संकल्प से ही सक्रिय होगा। और संकल्प से पहले आज्ञा चक्र सक्रिय होगा। फिर संकल्प की गहराई, और गहराई, और गहराई, और अंतिम गहराई में वह अंतिम चक्र को भी गतिमान कर देता है।

यह जो ध्यान की प्रक्रिया मैंने कही है, इस ध्यान की प्रक्रिया को हम जितनी गहराई तक ले जा सकें--अंतिम गहराई तक, चरम गहराई तक--उतने ही दूर तक हम अंतिम चक्र को सक्रिय करने में समर्थ हो सकते हैं। और यह खयाल रहे कि वह चक्र अनायास सक्रिय नहीं होता है, हम करेंगे तो ही हो सकता है।

हां, अनायास भी शायद कभी होगा। करोड़ों वर्ष बाद, जीवन की जो सहज विकास की प्रक्रिया है, उसमें कभी वह अनायास भी शायद सक्रिय होगा। लेकिन तब तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। साधना का एक ही अर्थ है कि प्रकृति जिस विकास को करोड़ों वर्षों में कर पाती है, साधक उसे तीव्रता से, बहुत शीघ्र, अल्प समय में पूरा कर लेता है। बुद्ध को, महावीर को जो स्थिति मिली है, इस बात की पूरी संभावना है कि अरबों-खरबों वर्ष बाद प्रत्येक आदमी जन्म के साथ ही शायद उस स्थिति में पैदा हो सके। लेकिन प्रकृति की प्रक्रिया बहुत लंबी, बहुत धीमी, बहुत आहिस्ता है। जो व्यक्ति उसको तीव्र गति देना चाहता है उसे कुछ करना पड़ेगा। उसे स्वयं सक्रिय होना पड़ेगा, उसे स्वयं कुछ करना पड़ेगा।

लेकिन हम स्वयं कुछ भी नहीं कर रहे हैं। हमारी हालत ऐसी है, जैसे नदी में बह रहे हों, जहां भी नदी ले जाएगी चले जाएंगे। लेकिन हम कुछ भी नहीं कर रहे हैं। और हमारा यह न करना, हमारा यह बहे-बहे जाना, हमारा यह सुस्त चुपचाप प्रकृति की धारा में जीते चले जाना, यही अगर हम ठीक से समझें तो जीवन की व्यर्थता का मूल सूत्र है। इस व्यर्थता को तोड़ना हो तो कुछ करना पड़ेगा।

तृषा गई एक बूंद से-प्रवचन-03