सिकंदर आते हैं और चले जाते हैं;
दुनिया अपनी राह पर चलती रहती है।
किसी के न होने से दुनिया में कोई कमी महसूस नहीं होती।
लेकिन अहंकार इसी भाषा में सोचता है
कि मैं बड़ा अनिवार्य दूँ अपरिहार्य हूं।
मेरे बिना दुनिया कैसे चलेगी? चांद-तारों का क्या होगा?
ध्यान रखना,
तुम न थे, तब भी दुनिया चली जाती थी।
तुम न होओगे, तब भी चली जाएगी।
यह जो थोड़ी देर का तुम्हारा होना है,
इसे उपद्रव मत बनाओ। इस थोड़ी देर के होने को ऐसा
शात कर लो कि यह करीब-करीब न होने जैसा हो जाए।
तुम न थे, फिर तुम न हो जाओगे।
यह बीच की जो थोड़ी देर के लिए उथल-पुथल है,
इसको भी ऐसी शाति से गुजार दो, जैसे कि न होना था
पहले, न होना अब भी है, न होना आगे भी होगा; तो तुम
अपने स्वभाव का अनुभव कर लोगे।
यह जो थोड़ी देर के लिए आख खुली है जीवन में,
इससे तुम अपने न होने को पहचान लो। न होने की
सतत धार तुम्हारे भीतर बह रही है। कल तुम न थे, कल
फिर तुम न हो जाओगे।
यह जो आज की थोड़ी घड़ी तुम्हें होने की मिली है,
इसमें पहचान लो कि नीचे सतत धार न होने की अभी भी बह रही है।
वह न होना ही स्वयं को जानना है।
वह न होना ही परमात्मा को पहचान लेना है।
बुद्ध ने उसे निर्वाण कहा है।
#ओशो