सासु माँ की चमचियाँ..(व्यंग्य)
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अब से पहले आपने सास पुराण तो खूब पढा होगा यानी कि सासु माँ का चरित्र वर्णन और उनके अपनी बहू के साथ संबंधों से तो आप भली भांति परिचित हैं। तो चलिए आज बात करते हैं सासु माँ की प्यारी चहेती चमचियों की..।
ऐसी चमचियाँ हर बहू को अपने ससुराल में देखने को मिल ही जाती हैं। ये वो छुपी रुस्तम होती हैं जो आपके सामने तो प्रत्यक्ष रूप से आप से बड़ी मीठी होकर बात करेंगी लेकिन आपके पीठ पीछे या फिर अप्रत्यक्ष रूप से आपको ताना ही मारेंगी।
सासु मां की इन्ही चमचियों से हमारी शिखा भी परेशान है। शिखा...हमारी कहानी की नायिका। तो शिखा की सासु मां की चमची नंबर वन हैं सासु मां की प्यारी बहन यानी शिखा की मासी सास जो कि घर के नज़दीक ही रहती हैं यानी पड़ोसन ही हैं। उनके बेटा बहू और पोते पोतियां विदेश में बसे हैं लेकिन उनका बेटा हर महीने खूब पैसे भेजता रहता हैं। मासी सास रेशम की साड़ी पहन, मैचिंग एक्सेसरीज और नेल पोलिश से खुद को सजा धजा के बहन से मिलने आती हैं। अपनी बहन और शिखा से बड़े प्यार से मिलती हैं। उधर उनकी बातों का सिलसिला शुरू और इधर शिखा का किचन में चाय नाश्ता बनाने का। इधर उधर की ..ज़माने भर की बातें हो जाएं तो धीरे धीरे घूम घाम के बात आजकल की बहुओं पे आ जाती है। फिर शिखा के ही घर में (मतलब उसकी सासु मां के घर में) उसके ही सामने, उसके हाथ की बनी चाय और नाश्ता डकार के दोनों आजकल की मॉडर्न बहुओं को कोसती रहतीं हैं। दोनों मिलकर निंदा रस का बड़ा आनंद लेती हैं। " देखो न आजकल की बहूओं को ज़रा भी संयम नही है। इन्हें तो पसंद ही नही है कि इनके मामले में ज़रा भी हम कुछ कह दें।इनसे तो सेवा की उम्मीद करना ही बेकार है। एक हमारा ज़माना था ..घर के सारे काम खुद करते थे और बच्चे भी संभालते थे। आजकल की नाज़ुक बहुओं का तो बिना कामवाली के काम ही नही चलता। न जाने हमारा बुढापा कैसे कटेगा"..इत्यादि इत्यादि। मज़े की बात ये है कि शिखा की सास और मासी सास ये बातें कर रही हैं जो कि खुद कभी अपनी सास के साथ रही ही नही। दोनो के पति अपनी नौकरी के चलते जीवन भर पत्नी व बच्चों के साथ किसी अन्य शहर में ही रहे। अपनी सास की सेवा करने व उनके मीठे वचन सुनने के सौभाग्य से दोनों जीवन भर वंचित ही रहीं। मासी सास की बहू तो विदेश में है सो उनका तो बस चलता नही अपनी बहू पर, लेकिन शिखा की सास को खूब सिखाती रहतीं कि कैसे अपनी बहू को कंट्रोल में रखना है। शिखा की सास भी आम सास जैसी ही हैं ...मतलब आपको पता ही है कैसी। बहू के घर मे प्रवेश करते ही उस पे नियमो की बारिश कर दी गयी। बिना सास से पूछे तो पत्ता भी न हिले। अपनी मर्ज़ी चलाने की ज़रा भी आज़ादी नही और पति से ज़रा हंस बोल लिया या उनके साथ कहीं घूमने चले गए तो बस चार दिन तक मुह फूल जाता माताश्री का। इस बात का मासी सास बड़ा फायदा उठातीं और शिखा की सास के मन मे भड़की चिंगारी में घी डालने का काम करतीं। शिखा का मन तो करता कई बार कि उनसे कह दे साफ साफ कि क्यों सासु मां को भड़काने का काम करती हैं। आखिर मिलता क्या है ये सब कर के, लेकिन क्या करे माँ पिता के दिये संस्कार बीच में आ जाते हैं और हर बार चुप कर के रह जाती है।
चमचियां सिर्फ सासु मां की हमउम्र महिलाएं ही नही होती। इनमे कुछ ऐसी बहुएं भी होती है आस पडोस की जो खुद अपने घर में चाहे जैसी रहें पर सासु मां के सामने हमेशा एक आदर्श बहू होने का स्वांग करेंगी जिस से सासु मां को लगे कि हाय! काश मेरी बहू भी ऐसी होती। ये हैं चमची नंबर दो। सासु मां से जब भी मिलेंगी तो चरण स्पर्श करेंगी। शिखा से ये रोज़ रोज़ पैर छूने का आडंबर न होता.. सम्मान दिल मे है तो दिखावे की क्या आवश्यकता। पड़ोसन हर तीज त्योहार पे इनका आशीर्वाद लेने पहुंच जाएंगी तो कभी उनके लिए कुछ खाने को बना के लाएंगी कि आँटी जी देखिए न बड़े प्यार से बनाया है आपके लिए। और अपने मुह मियां मीठू बनेंगी। फिर शिखा की सासु मां अपनी बहू को सुनाते हुए चमची से कहेंगी कि "बड़े खुशनसीब हैं तुम्हारे सास ससुर जो ऐसी बहू मिली।" एक दिन तो शिखा ने खुद सुना उस पड़ोसन की बेटी को अपने दादा जी (पड़ोसन के ससुर जी) के बारे में उल्टा सीधा बोलते हुए। बताइये भला...अब बच्चे तो अपने बड़ों से ही सीखते हैं।
एक और भी है चमची पड़ोसन।चमची नंबर तीन। कम पढ़ी लिखी, कम उम्र में शादी हो गयी। शिखा से एक साल छोटी ही है..दो बेटे हैं एक दस साल का एक बारह साल का। पति ने पाबंदी लगा रखी है कहीं आने जाने और किसी भी बाहर वाले से बात करने की। पति जब चाहे पिटाई कर दे, उसकी नज़र में पति परमेश्वर जो ठहरा।चोरी छिपे सासु मां से ही बात कर पाती है बस। शिखा की आधुनिकता, उसका पढ़ा लिखा होना, आत्मनिर्भर होना, उसका आत्मविश्वास पसंद नही था पड़ोसन को। तो बस ये चमची भी सास की हर बात में हामी भर देती।
शिखा की सास हर जगह अपनी बहू की निंदा का आनंद लेती और उनसे ज़्यादा आनंद लेती ये चमचियां.. जो हाँ में हाँ मिलाती और अपनी तरफ से एक दो बातें और जोड़ के सासु मां के इस विश्वास को और पक्का कर देतीं की भाई इस जन्म में तो उन्हें अच्छी बहू नसीब नही हुई।
शिखा को अब इन बातों से फर्क नही पड़ता था। उसका मन करता कि अपनी सास से कह दे कि प्यारी सासु माँ, मुझे आपसे पूरी सहानुभूति है कि इस जन्म में तो आपको सुशील, आज्ञाकारी बहू ना मिली पर अब जो भी है यही है। तो दुखी होने के बजाय अब इसी से काम चलाओ और खुश रहो। क्योंकि अच्छे बुरे समय मे काम तो मैं ही आउंगी न कि ये चमचियां...।