पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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लूट...

"क्यों भइया मटके क्या भाव दिए.."
"चालीस रूपए साब.."
"क्या भइया लूट मचा रखी है क्या..बीस रुपए से एक ज्यादा न दूँगा.."
"साब बीस रुपए में क्या होता है ..और फिर एक दिन ही तो बिकते है मटके.."
"तो क्या पूरे साल के कमाई हमसे ही निकालोगे..आखिरी बार कह रहा हूँ पच्चीस रुपए दूँगा बस..."
"साब कमर तोड़ कर मेहनत करनी पड़ती है..तब जाकर एक मटका बनता है..पूरा परिवार काम करता है..ऐसे में पच्चीस रुपए ..."
"तो भइया क्या सारा खर्चा हमी से निकालोगे..."
"सुनिए बड़ा गर्मी लग रहा है यहाँ..काहे जन्माष्ठमी के दिन झगड़ा कर रहे है अभी और भी जगह जाना है ..चलिए तीस रूपए दीजिए और काम खत्म करिए...और भइया अब रख लो इतना बहुत है.."
चौधराईन ने बात खत्म की..चौधरी जी ने तीस रूपए उसे पकड़ाए..और अपनी गाडी में बैठ निकल गए...कुम्हार फिर से तपती धुप में अपने पसीने से मटके गढ़ने लग गया...

चौधरी जी ने गाड़ी कैफ़े कॉफ़ी दे के बाहर गाड़ी खड़ी की..चौधराईन को तेज गर्मी लग रही थी..कोल्ड कॉफी मंगाई....इतने में उनका फोन बज उठा..

"हेल्लो हाँ पापा..मिला मटका.."
"हाँ बेटा मिल गया..."
"कितने में दिया.."
"अरे लूट मचा रखी है इन लोगो ने..मनमानी करते है आज के दिन...चालीस बोल रहा था..तीस में माना जाकर..वो तो तुम्हारी माँ को गर्मी लग रही थी..वर्ना मैं तो पच्चीस से एक ज्यादा न देता.."

"अच्छा अभी कहाँ है.."
"कोल्ड कॉफी पी रहे है..बहुत गर्मी है न.."

फोन रखा...काउंटर पर बील दिया...चार सौ पचास रुपए...और चल दिए...

इधर शाम होने को थी..कुम्हार अब भी मटके गढ़ने में लगा था..
"सुनो जी..कितना कमाई हुआ आज.."
"कहाँ कमाई हुआ कुछ..गल्ले में देखो..कोई चार सौ पचास है बस..पहले तो कम से कम जन्माष्ठमी के दिन कुछ कमाई हो जाती थी अब तो आज के दिन भी.."
"मुन्ना का बुखार भी नहीं उतर रहा..डॉक्टर को दिखाना ही पड़ेगा.."
"हम्म डॉक्टर मतलब फीस और दवा मिलकर..कम से कम दो सौ.."
कुम्हार सोच में डूब गया...
"तो छोड़ कहे नहीं देते..कोई मिल में मजदूरी ही कर लो..कम से कम पेट तो भरेगा..."
ह्म्म्म...कुम्हार को उसकी पत्नी ने रौशनी दिखाई...

अगले साल...

चौधरी जी को मटके की दूकान पुरे रस्ते में कहीं नहीं दिखी...आखिर कार एक बड़े से दुकान में सजा हुआ मटका टंगा देखा..
"जी ये मटका कितने का है.."
"सर सिर्फ तीन सौ रूपए और अगर बांसुरी भी साथ में लीजिए तो डिस्काउंट है..सिर्फ तीन सौ तीस में दोनों.."
चौधरी जी ने ख़ुशी ख़ुशी दोनों चीजे ले ली..

दूकानदार दार ने एक फोन घुमाया...
"हेल्लो हाँ जी।.दो सौ मटके और भेज दीजिए..बहुत डिमांड है..हाँ वही रेट दो सौ रुपए.."

फैक्टरी में मटके तेजी से बन रहे है..वहीँ कोने में वो कुम्हार भी मटके गढ़ रहा है...अब भी पसीने से तरबतर है...

हाँ चौधरी जी अब बड़े खुश है....सड़क किनारे अब कोई लूट जो नहीं मचा रहा....

© अमृत