दुःख और आनंद
हमारी व्याख्याएं है।
हमारी दृष्टियां है,
हमारे रुझान है,
हमारे देखने के ढंग है।
यह तुम्हारे मन पर
निर्भर है कि
वह जीवन को
किस तरह लेता है।
अपने ही जीवन को
स्मरण करो।
और विश्लेषण करो।
क्या तुमने कभी
संतोष के,
परितृप्ति के,
सुख के,
आनंद के क्षणों का
हिसाब रखा है?
तुमने उसका कोई
हिसाब नहीं रखा है।
लेकिन तुमने
अपने दुःख,
पीड़ा और संताप का
खूब हिसाब रख है।
और तुम्हारे पास
इसका बड़ा संग्रह है।
तुम एक
संग्रहीत नरक हो
और यह
तुम्हारा चुनाव है।
कोई दूसरा तुम्हें
इस नरक में
नहीं ढकेल रहा है।
यह तुम्हारा ही
चुनाव है।
मन
नरक को पकड़ता है,
उसका संग्रह करता है
और फिर खुद
नकार बन जाता है।
और फिर वह
दुस्चक्र हो जाता है।
तुम्हारे चित में
जितना नकार
इकट्टा होता है।
तुम उतने ही
नकारात्मक हो जाते हो।
और फिर
नकार का संग्रह
बढ़ता जाता है।
समान-समान को
आकर्षित करता है।
और यह सिलसिला
जन्मों-जन्मों से
चल रहा है।
तुम
अपनी नकारात्मक
दृष्टि के कारण
सब कुछ चूक रहे हो।