पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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बड़े भैया
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बड़े भैया ने घूर कर देखा तो स्मिता सिकुड़ गई. कितनी कठिनाई से इतने दिनों तक रटा हुआ संवाद बोल पाई थी. अब बोल कर भी लग रहा था कि कुछ नहीं बोली थी. बड़े भैया से आंख मिला कर कोई बोले, ऐसा साहस घर में किसी का न था.
‘‘क्या बोला तू ने? जरा फिर से कहना,’’ बड़े भैया ने गंभीरता से कहा.
‘‘कह तो दिया एक बार,’’ स्मिता का स्वर लड़खड़ा गया.
‘‘कोई बात नहीं,’’ बड़े भैया ने संतुलित स्वर में कहा, ‘‘एक बार फिर से कह. अकसर दूसरी बार कहने से अर्थ बदल जाता है.’’
स्मिता ने नीचे देखते हुए कहा, ‘‘मुझे अनिमेष से शादी करनी है.’’
‘‘यह अनिमेष वही है न, जो कुछ दिनों पहले यहां आया था?’’ बड़े भैया ने पूछा.
‘‘जी.’’
‘‘और वह बंगाली है?’’ बड़े भैया ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा.
‘‘जी,’’ स्मिता ने धीमे स्वर में उत्तर दिया.
‘‘और हम लोग, जिस में तू भी शामिल है, शुद्ध शाकाहारी हैं. वह बंगाली तो अवश्य ही मांस, मछली खाता होगा?’’
‘‘जी,’’ स्मिता ने सिर हिलाया.
‘‘यह शादी नहीं हो सकती,’’ बड़े भैया ने गरज कर कहा.
‘‘क्यों बड़े भैया?’’ स्मिता ने साहस जुटा कर पूछा.
‘‘क्यों, क्या दिखाई नहीं देता? एक उत्तर तो दूसरा दक्षिण. एक पूरब तो दूसरा पश्चिम. कहां है मेल इस में?’’ बड़े भैया ने डांट कर पूछा, ‘‘कैसे रह पाएगी उस वातावरण में?’’
‘‘पर हम दोनों ने एकदूसरे से शादी करने का फैसला कर लिया है. क्या यह मेल नहीं है?’’ स्मिता ने दृढ़ता से उत्तर दिया.
‘‘अच्छा तो तू इतनी बड़ी हो गई है कि अपने फैसले स्वयं करेगी. लगता है तू अपने को विश्वसुंदरी समझने लगी है कि जो चाहे, कर लेगी,’’ बड़े भैया ने व्यंग्य से कहा. स्मिता यह सोच कर चुप रही कि उत्तर देगी तो वे और भड़क जाएंगे. उन का टेप एक बार चालू होता है तो फिर बंद नहीं होता. कोई उत्तर न पा कर बड़े भैया ने पूछा, ‘‘और अगर मैं शादी की मंजूरी नहीं दूं तो?’’
‘‘तो हम कोर्ट में शादी करेंगे,’’ स्मिता का विद्रोह भड़क उठा.
‘‘शाबाश बेटी,’’ भैया ने ताली बजाते हुए कहा, ‘‘तू ने मेरी इज्जत रख ली. अगर मैं शादी के लिए हामी भर देता हूं तो लोग हजार सवाल करेंगे. मैं जवाब देतेदेते थक जाऊंगा.’’ स्मिता को सहसा विश्वास नहीं हुआ कि बड़े भैया समर्थन कर रहे हैं या तीखा व्यंग्यबाण छोड़ रहे हैं. उन से किसी बात की, कभी भी उम्मीद की जा सकती थी. स्मिता दुविधा में पड़ गई.
‘‘अब क्या हुआ? चुप क्यों हो गई?’’ बड़े भैया ने डांट कर पूछा.
स्मिता ने डरतेडरते कहा, ‘‘आप नाराज हो गए.’’
‘‘हां, नाराज होने की बात ही है. अच्छी तरह से फै सला कर लिया है न? ऊंचनीच सब सोच लिया है न?’’ भैया ने कहा, ‘‘बाद में पछताएगी तो नहीं?’’
‘‘जी नहीं,’’ संक्षिप्त उत्तर दिया.
‘‘तो जाओ, कोर्ट में शादी कर आओ. मैं तुम दोनों को आशीर्वाद दे दूंगा,’’ बड़े भैया ने भी अपना निर्णय सुना दिया. स्मिता का दिल डूब गया. स्वीकृति पा कर वह प्रसन्न नहीं हुई. हर लड़की की तरह वह भी वधू बन कर पूरी साजसज्जा और शृंगार के साथ विदा होने की अभिलाषा रखती थी. यह तो बिलकुल ऐसा ही होगा कि टिकट ले कर एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पर पहुंच गई. जब तक विद्रोह की स्थिति में थी, बहुत ऊंचाऊंचा सोचती थी और अब असलियत सामने आई तो दिल बैठ गया. सारे सपनों का रंग फीका पड़ने लगा. बड़े भैया 7 भाईबहनों में सब से बड़े थे और शायद इसीलिए यह नाम उन के व्यक्तित्व और ऊंचे दरजे के कारण उन के चेहरे पर चिपक गया था. मातापिता के गुजर जाने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उन के कंधों पर आ गई थी. 2 भाइयों की शादी तो पिता ने ही कर दी थी. मरने से पहले 2 बहनों की शादी तय कर दी थी. ये सब काम बड़े भैया ने ही किए हैं. इस बात की उन्हें प्रशंसा भी मिली. समय से तीसरी बहन की भी शादी कर दी. इसी समय उन की पत्नी का देहांत हो गया. उन की अपनी कोई संतान न थी. अब रह गई सब से छोटी बहन स्मिता, जो उन से 15 वर्ष छोटी थी. उन के बीच भाईबहन का नहीं, एक पितापुत्री का रिश्ता था. दोनों घर में अकेले थे क्योंकि अन्य बहनें ससुराल चली गई थीं और भाई अपनीअपनी नौकरियों पर अन्य शहरों में थे. स्मिता बड़े भैया से जितनी डांट खाती थी, उतना ही वह उन के सिरचढ़ी भी थी.
कोर्ट की शादी से स्मिता धूमधाम की शादी से वंचित रही जबकि अनिमेष के परिवार वालों को लगा जैसे वे लोग धोखा खा गए. खाली हाथ, बिना दहेज की बहू के आने से उन की नाराजगी चेहरे पर एक बहुत बड़े मस्से की तरह दिखाई देने लगी. चूंकि अनिमेष ही अपनी कमाई से घर चला रहा था, इस कारण कुछ कहने का साहस किसी को न हुआ.
‘‘भाईसाहब,’’ एक परिचित ने व्यंग्य से पूछा, ‘‘यह बेमेल शादी आप ने स्वीकार कैसे कर ली? कहां हम उत्तर भारत के, कहां वह बंगाली?’’बडे़ भैया ने कूटनीति का सहारा लेते हुए कहा, ‘‘भई, मेरी स्वीकृति का प्रश्न ही कहां उठता है? उन दोनों ने अपनी मरजी से कोर्ट में शादी कर ली तो मैं क्या कर सकता था? हां, आप को एक दावत न मिलने का दुख अवश्य होगा.’’ परिचित महोदय ने झेंप कर कहा, ‘‘मेरा मतलब यह नहीं था. पता नहीं कैसे निर्वाह करेंगे. आखिर उन दोनों की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तो बिलकुल अलग है न?’’
‘‘सांस्कृतिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो पर संस्कार तो सब के भारतीय ही हैं न. और फिर सारे विद्वान, जिस में आप भी हैं, कहते हैं न कि विवाह तो जन्म के साथ ही निर्धारित हो जाते हैं,’’ बड़े भैया ने हंसते हुए आगे कहा, ‘‘मैं और आप क्या कर सकते हैं.’’ उन सज्जन का मुंह बंद हो गया. स्मिता ने दर्शनशास्त्र में एमए किया था और साथ ही बीएड भी कर लिया था. पहले एक स्कूल में और फिर एक अच्छे नामी कालेज में व्याख्याता के पद पर काम कर रही थी. अनिमेष दूसरे कालेज में वरिष्ठ व्याख्याता था. अकसर मिलतेजुलते रहते थे. एकदूसरे के प्रति आकर्षण ने अपना रंग जमाना शुरू कर दिया. अंत में शादी करने का भी इरादा कर लिया. दोनों परिवारों के विरोध का भी उन्हें आभास था, पर कोशिश यही थी कि शादी बिना किसी झंझट के हो जाए. बाकी देख लेंगे. आशा के विपरीत बड़े भैया ने कुछ नहीं कहा जबकि अनिमेष ने घर वालों ने कुछ समय तक असहयोग आंदोलन किया. शादी को लगभग 7 महीने हो चुके थे और ऊपरी तौर से सब की जीवनयात्रा सुचारु रूप से चल रही थी.
रात्रि के 11 बजे होंगे. बड़े भैया टीवी पर एक रोचक धारावाहिक देख रहे थे. तभी अचानक दरवाजे पर घंटी तो बजी ही, साथ ही कोई धड़ाधड़ बड़बड़ा भी रहा था. बड़े भैया को दहशत हुई कि कहीं कोई लुटेरा या आतंकवादी तो नहीं. धीरेधीरे सोचते हुए दरवाजे तक आए. दरवाजे में लगे शीशे में झांक कर देखा, पर अंधेरे में कुछ समझ में नहीं आया.
‘‘कौन है?’’ उन्होंने धमकाते हुए पूछा.
‘‘मैं हूं,’’ एक मिमियाता स्वर आया, ‘‘दरवाजा खोलिए.’’ आवाज कुछ परिचित सी लगी, पर धोखा भी तो हो सकता है. सोच कर बड़े भैया ने कड़क कर पूछा, ‘‘मैं कौन?’’
‘‘सिम्मी,’’ लगा कि आवाज में जान ही न थी. बड़े भैया प्यार से उसे सिम्मी बुलाते थे. बड़े भैया ने झट से दरवाजा खोला. स्मिता हाथ में एक छोटा सूटकेस लिए खड़ी थी, ठीक किसी फिल्मी नायिका की तरह. पहले तो बड़े भैया की छाती से चिपट कर रोई और फिर सीधे अपने कमरे में चली गई. बड़े भैया ने कुछ नहीं कहा. केवल गंभीरता से सोचते रहे कि सुबह होने पर ही पूछेंगे. वैसे पूछने की आवश्यकता भी क्या है?
सवेरे वे अखबार पढ़ रहे थे. स्मिता सामने बैठी बेचैनी से प्याले, प्लेट इधरउधर करते हुए सोच रही थी कि ये बड़े भैया हैं कैसे? कोई चिंता ही नहीं… अंत में जब सब्र का बांध टूट गया तो उस ने भैया के हाथों से अखबार छीनते हुए कहा, ‘‘पूछोगे नहीं, मैं क्यों आई हूं?’’
शरारतभरी मुसकाराहट से उन्होंने कहा, ‘‘पूछने की क्या जरूरत है? पतिपत्नी में तकरार तो होती ही रहती है. सब ठीक हो जाएगा.’’ स्मिता ने क्रोध से कहा, ‘‘यह तकरार नहीं है, बड़े भैया. मैं वह घर हमेशाहमेशा के लिए छोड़ आई हूं.’’
बड़े भैया ने हंस कर कहा, ‘‘शाबाश बेटी, यह तू ने बड़ा अच्छा किया. इस घर में तेरी बड़ी कमी महसूस होती थी. आज लौकी के कोफ्ते बनाना बहुत दिन हो गए खाए हुए.’’
‘‘बड़े भैया, आप इसे मजाक समझ रहे हैं?’’ स्मिता ने क्रोध से पूछा. उन्होंने गंभीरता से उत्तर दिया, ‘‘जिंदगी में ऐसे फैसले कभी मजाक नहीं होते. तू ने स्वयं शादी का फैसला किया. मैं ने मान लिया. अब तू हमेशाहमेशा के लिए यहां आ गई है, यह भी मान लिया. तू चिंता मत कर. यहां कोई कष्ट नहीं होगा. मेरे लिए तो बहुत अच्छा है.’’ एक बार भी तो नहीं पूछा कि झगड़ा क्यों हुआ? मानो, उन्हें कोई मतलब ही नहीं है. स्मिता तो सबकुछ उगलना चाहती थी. कब तक चुप बैठी रहेगी. अचानक वह सिसकने लगी. रोतेरोते बोली, ‘‘बड़े भैया, उन्हें बहू नहीं, एक नौकरानी चाहिए. दिनभर घर में चक्की की तरह पिसती रहती हूं, पर किसी को मेरी परवा नहीं.’’
‘‘किसी से क्या मतलब?’’ भैया ने अनजान बनते हुए पूछा.
‘‘ कहा न किसी को भी नहीं,’’ स्मिता ने चिढ़ कर कहा.
‘‘पर तू कालेज पढ़ाने तो अब भी जाती है न?’’ बड़े भैया ने पूछा.
‘‘सो तो जाती हूं,’’ स्मिता ने कहा, ‘‘पर मेरे पीछे कोई भी काम नहीं करता. सब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं.’’
‘‘तो तू नौकरी छोड़ दे,’’ बड़े भैया ने सलाह दी.
‘‘रुपया जो कमा कर लाती हूं, रुपया भी तो चाहिए उन्हें,’’ स्मिता ने तड़क कर कहा.
‘‘और अनिमेष का क्या कहना है?’’
‘‘पहले तो मेरी ओर से कुछ बोलते भी थे, पर अब मातापिता और बहन के दवाब में उन्होंने भी साथ देना छोड़ दिया है. कहते हैं कि मैं ही परिवार में मिलजुल कर नहीं रहती. अब आप ही बताइए कि क्या मेरी अपनी कोई शख्सियत नहीं है? मेरी अपनी कोई पहचान नहीं है? क्या मुझे अपनी तरह से जीने का अधिकार नहीं है?’’ वह एक ही सांस में कह गई सबकुछ. गंभीरता से विचार करते हुए बड़े भैया ने कहा, ‘‘यह बात तो ठीक है. अगर इंसान अपनी पहचान ही भूल जाए तो तो पढ़ाईलिखाई का क्या लाभ? सच ही तेरे साथ बड़ा अन्याय हुआ है. अच्छा किया जो तू वह घर छोड़ कर चली आई हमेशाहमेशा के लिए.’’ स्मिता को समझ न आया कि बड़े भैया ताना दे रहे हैं या समर्थन कर रहे हैं. अकसर ऐसी ही दोहरी बात करते हैं. उन को समझना बड़ा मुश्किल है.
‘‘अब मैं क्या करूं?’’ स्मिता ने उलझन में पड़ कर पूछा.
‘‘करना क्या है, आराम से यहां रह और चैन की बांसुरी बजा. हां, कालेज जाना मत छोड़ना, खाली दिमाग शैतान का घर होता है,’’ भैया ने समझाते हुए कहा और फिर कुछ मुसकराते हुए बोले, ‘‘अब कुछ नाश्तावाश्ता भी मिलेगा?’’ स्मिता के तने हुए चेहरे पर मुसकान की लहर दौड़ गई. बड़े भैया कभी नहीं बदलेंगे. 7 दिन हो गए. स्मिता के खिले हुए मुखड़े पर चिंता की लकीरें उभरने लगी थीं. बड़े भैया के समर्थन और आश्रय प्रदान से उसे बड़ी तसल्ली हुई थी. पहले तो यही सोचा था कि देखते ही वे डांटेंगे और फटकार लगाएंगे, बुराभला कहेंगे, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. आखिर बड़े भैया को छोड़ कर उस का था ही कौन.
‘‘क्या बात है, बड़ी परेशान लग रही है?’’ बड़े भैया ने पूछा.
‘‘कुछ तो नहीं,’’ स्मिता ने कहा.
‘‘कुछ तो है,’’ वे मुसकराए.
स्मिता ने झिझकते हुए कहा, ‘‘आप वहां कहलवा दीजिए कि मैं यहां हूं.’’
‘‘और बड़े आराम से हूं,’’ उन्होंने जोड़ते हुए कहा, ‘‘मैं क्यों कहूं ऐसा? पर लगता है तेरे दिल में अनिमेष के लिए कुछ जगह है, इसीलिए परेशान है.’’
स्मिता ने झल्ला कर कहा, ‘‘मुझे कोई परवा नहीं उन लोगों की. क्या उन को मेरी परवा है?’’
‘‘इसीलिए तो कहता हूं,’’ बड़े भैया ने हंस कर कहा, ‘‘जब एक बार फै सला घर छोड़ने का कर लिया तो अब उसी पर अटल रह.’’ स्मिता चुप हो गई. इतवार का दिन था. छुट्टी के हिसाब से सब काम धीरेधीरे हो रहा था. घंटी बजी तब स्मिता अपने कमरे में थी. महरी के सिवा कौन होगा? वह भी तो आराम से आएगी. बड़े भैया ने धीरेधीरे उठ कर दरवाजा खोला. ‘‘तुम?’’ बड़े भैया ने चौंक कर पूछा, ‘‘यहां क्यों आए हो?’’
‘‘स्मिता से मिलने आया हूं,’’ अनिमेष ने झेंपते हुए कहा.
‘‘वह तुम से नहीं मिलना चाहती,’’ कह कर उन्होंने तड़ाक से दरवाजा बंद करने की नाकामयाब कोशिश की.
‘‘बड़े भैया,’’ अनिमेष ने बड़े सम्मान से कहा, ‘‘आप से तो बात कर सकता हूं, या आप भी मुझ से बात नही करेंगे?’’
भैया ने सोचते हुए कहा, ‘‘हां, मैं तुम से बात कर सकता हूं. पर याद रखना, मुझे तुम मूर्ख मत समझना.’’
अनिमेष ने झुक कर उन के घुटने छूते हुए कहा, ‘‘ऐसी जुर्रत कर सकता हूं क्या?’’
‘‘ठीक है, अंदर आ जाओ.’’ स्मिता ने अनिमेष को देखा तो पास आ गई. दोनों एकदूसरे को देख रहे थे. बड़े भैया ने डांट कर कहा, ‘‘सिम्मी, तू अंदर जा. तेरा यहां कोई काम नहीं है.’’ स्मिता सहम कर अंदर चली गई. चाय मेज पर रखी थी. बड़े भैया ने चाय का प्याला भर कर अनिमेष की ओर बढ़ाया. ‘‘यहां क्यों आए हो?’’ बड़े भैया ने तीखे स्वर में प्रश्न किया.
‘‘मैं स्मिता को लेने आया हूं.’’
‘‘वह तुम्हारे साथ नहीं जाएगी,’’ बड़े भैया ने दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘वह तुम्हारा घर हमेशाहमेशा के लिए छोड़ आई है. यहां उसे कोई तकलीफ नहीं है.’’
अनिमेष ने झिझकते हुए कहा, ‘‘दरअसल, कुछ गलतफहमी हो गई है, मैं उसे दूर करने आया हूं.’’
‘‘गलतफहमी? कैसी गलतफहमी?’’ बड़े भैया ने क्रोध से कहा, ‘‘क्या तुम उसे एक नौकरानी की तरह नहीं रखते? जब तुम उसे बाहर काम करने के लिए भेजते हो तो क्या तुम्हारा और तुम्हारे घर वालों का यह कर्तव्य नहीं कि घर के कार्यों में उस का हाथ बंटाएं?’’
‘‘यही उसे समझाना चाहता हूं कि आगे से ऐसा नहीं होगा. बस, उसे थोड़ा मेरे मातापिता से इज्जत से पेश आना चाहिए.’’
‘‘तुम्हारा मतलब है मेरी बहन बदतमीज है?’’ बड़े भैया ने क्रोध से पूछा. अनिमेष ने तुरंत बचाव करते हुए कहा, ‘‘जी नहीं, मैं ने ऐसा नहीं कहा. मैं ने कहा, थोड़ा सम्मान से पेश आए. आखिर वे मेरे मातापिता हैं.’’
‘‘ओह,’’ बड़े भैया ने व्यंग्य से कहा, ‘‘सम्मान से पेश नहीं आती. पढ़ा कर तो तुम भी आते हो. क्या आते ही झाड़ूपोंछा और खाना बनाने लगते हो? थोड़ी देर तो नवाब साहब की तरह बैठ कर चायनाश्ते का इंतजार करते ही हो?’’ अनिमेष उत्तर के लिए सही शब्द न पा सका. उस की जीभ लड़खड़ा गई. ‘‘अरे, आते ही थकीमांदी लड़की से सब यह उम्मीद करें कि काम में जुट जाए और सम्मान से भी पेश आए? यह सोच कर तुम ने एक पढ़ीलिखी लड़की के साथ बड़ा अन्याय किया है,’’ बड़े भैया ने सिर हिलाते हुए कहा.
‘‘भैया, आप समझ नहीं रहे हैं,’’ अनिमेष ने तीव्र स्वर में कहा, ‘‘वह किसी भी सूरत में मुझ से और मेरे परिवार से घुलमिल कर नहीं रहना चाहती.’’
‘‘यानी तुम ने उसे और उस ने तुम्हें समझने में भूल की है. यह शादी तुम ने भावना में बह कर जल्दबाजी में कर ली?’’ भैया ने तीखा प्रश्न किया.
‘‘जी, ऐसा तो नहीं था,’’ अनिमेष ने हकलाते हुए कहा, ‘‘हम ने सारे पहलुओं पर अच्छी तरह से गौर कर लिया था.’’
‘‘असलियत की दुनिया कल्पना के संसार से बहुत अलग होती है न दामाद बाबू,’’ बड़े भैया ने कटु व्यंग्य से पूछा, ‘‘अब जब समझ ही लिया है कि यह शादी एक भूल थी तो यहां क्या करने आए हो?’’
‘‘मैं उसे समझाना चाहता हूं,’’ अनिमेष ने धीरे से कहा.
‘‘यानी तुम्हारे दिल में अभी भी उस के लिए थोड़ी जगह है?’’भैया कुटिलता से मुसकराए.
अनिमेष सिर झुका कर नीचे देखने लगा.
‘‘सुनो दामाद बाबू, सिम्मी तुम से न तो मिलेगी और न ही यहां से जाएगी,’’ भैया ने दृढ़ता से कहा, ‘‘तुम जा सकते हो.’’ अनिमेष ने भी उतनी ही दृढ़ता से उत्तर दिया, ‘‘भैया, स्मिता से बिना मिले मैं यहां से नहीं जाऊंगा, पतिपत्नी के बीच में आप क्यों आते हो? मुझे एक मौका दीजिए.’’
‘‘कैसा पति, कैसी पत्नी,’’ बड़े भैया ने कटुता से, ऊंचे स्वर में कहा ताकि स्मिता भी साफसाफ सुन ले, ‘‘सिम्मी तुम्हारा घर हमेशाहमेशा के लिए छोड़ आई है. यह अच्छी तरह समझ लो.’’ स्मिता के कलेजे पर सांप लोट रहे थे. उसे ऐसी आशा न थी कि बड़े भैया अनिमेष का इतना अपमान करेंगे. उसे अनिमेष पर न जाने क्यों तरस आने लगा.
‘‘जो भी हो, मैं मिल कर ही जाऊंगा,’’ अनिमेष ने स्मिता के कमरे की ओर बढ़ते हुए कहा.
‘‘ठहर जाओ,’’ बड़े भैया ने डांट कर कहा, ‘‘मैं इतना कमीना तो नहीं हूं कि तुम्हें घर से बाहर उठा कर फेंक दूं, पर सिम्मी से मिलने की आज्ञा कभी नहीं दूंगा. इधर वाला कमरा खाली है. वहां जब तक मरजी हो रहो, पर सिम्मी से मिलने की कोशिश मत करना.’’ अनिमेष लाचारी से कमरे में चला गया. स्मिता थोड़ी देर में बाहर आई तो चेहरे पर परेशानी झलक रही थी. बड़े भैया ने रूखे स्वर में कहा, ‘‘मैं ने अनिमेष को डांट दिया है. अगर अपनी और मेरी इज्जत प्यारी है तो उस से बात मत करना. अब तुम हमेशाहमेशा के लिए यहां रहो. हां, नौकर के हाथ नाश्ता और खाना कमरे में ही भिजवा देना. मैं बाहर उस की सूरत भी नहीं देखना चाहता, समझी?’’ बड़े भैया 2 दिनों तक दीवार बने बीच के कमरे में आरामकुरसी लगा कर बैठे रहे. दफ्तर से भी छुट्टी ले ली थी. स्मिता पर पूरा विश्वास था कि वह अनिमेष से बात नहीं करेगी. अनिमेष के ऊपर ही पहरा लगाया हुआ था कि वह उकता कर चला जाएगा. बड़े भैया अपनी कूटनीति पर मुसकरा रहे थे.
वे पहले ही जानते थे कि इस तरह की शादी में कोई दम नहीं होता, पर पागलों को भला कोई समझा सकता है क्या? 3 दिन हो गए. बड़े भैया ने हड़बड़ा कर आंखें खोलीं. न जाने कब आंख लग गई थी. दिन चढ़ आया था. अखबार वाला कभी का अखबार बालकनी में फेंक कर चला गया था. अजीब सा सूनापन था.
‘‘सिम्मी,’’ बड़े भैया ने पुकारा, ‘‘अरे, चायवाय मिलेगी या नहीं?’’ कोई उत्तर नहीं. सिम्मी के कमरे में झांका. कमरा खाली था. ध्यान से देखा तो उस का सूटकेस भी नदारद था. अनिमेष भी गायब था. कहां गए? और तब बड़े भैया ठठा कर हंस पड़े. आखिर उन की तरकीब काम कर ही गई. अगले साल स्मिता गोद में अपना बच्चा ले कर बड़े भैया के पास आई. अनिमेष साथ में था. बड़े भैया खिलखिला कर हंस पड़े, ‘‘अब तुम दोनों उस चैक के हकदार हो जो मैं ने तुम्हारी शादी के लिए रखा हुआ था. बच्चा भी है, इसलिए सूद के साथ बोनस भी दे रहा हूं. अब आशा करता हूं कि तुम दोनों हमेशाहमेशा एकदूसरे के साथ रहोगे.’’ दोनों ने शरमा कर मुंह नीचे कर लिया.