कब आयेंगे महिलाओं के अच्छे दिन ????
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मासूम चीख रहे हैं, परिजन न्याय की गुहार लगा रहे हैं
लोग तमाशा देख रहे हैं, प्रशासन कुम्भकर्ण की भांति सोया हुआ है
और बलात्कार जैसे संवेदनशील घटना पर राष्ट्र संचालन करने वाले शीर्षस्तरीय नेता ओछी राजनीति कर रहे हैं,
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क्या यही है हमारा भारत ??
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हमारे देश में दुष्कर्म, हत्या जैसी घटनाओं के विरूद्ध जनांदोलन होते हैं, पोस्टर बनाए जाते हैं, नारे लगाए जाते हैं किंतु चन्द दिनों बाद पुन: वही स्थिति आ जाती है जो पहले थी क्योंकि प्रशासन आरोपियों को पकडऩे के बजाय आंदोलनकारियों पर कठोर कार्रवाई करता है।
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वास्तव में दिन दूनी रात चौगुनी दर से बढ़ते हुए दुष्कर्म की घटनाओं का मूल कारण क्या है ??????
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आखिर मनुष्य क्यों संवेदहीनता की सारी सीमाओं को लांघ रहा है ?????
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अबोध बालिकाओं से लेकर अधेड़ महिलाओं तक को पुरूष ने अपनी हवस का शिकार बनाया है।
दिल्ली में निर्भया के साथ हुए बर्बर बलात्कार की घटना से पूरा देश दहल गया था। जगह जगह धरने प्रदर्शन हुए थे। समाज के ठेकेदारों ने महिलाओं की रक्षा करने की कसमें खायी थी।
फास्ट ट्रेक कोर्ट का हवाला देकर तत्काल कुछ कानून भी बनाए गए, महिलाओं की पूर्ण सुरक्षा के वादे भी किए किंतु देश का इतिहास गवाह है कि यहां सरकार केवल वादे करती है लेकिन उसे कभी नहीं निभाती।
देश की सुरक्षा प्रणाली व न्यायपालिका की संरचना ही ऐसी है कि महिलाओं का शोषण करने वाले अपराधी भयहीन हो चुके हैं। उन्हें न तो समाज की परवाह है, न कानून का भय। महिला अपराधों के विरूद्ध हमारे देश में कानून तो पर्याप्त हैं, पर उन्हें लागू करने वाली मशीनरी प्रभावी नहीं है।
सदियों से चली आ रही समाज में पुरूष प्रधान मानसिकता भी दुष्कर्म की घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। शिक्षा के अभाव, अनियमित खान पान व पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव ने मनुष्य के संयम पर जो कुठारघात किया है उसका शीघ्रतापूर्वक इलाज करना परमावश्यक है।