पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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सुशीला, तू पूछती है कि पतिव्रता का क्या अर्थ है? और सती सक्कूबाई, सती अनसूया, सती सावित्री जैसी महान पतिव्रता साध्वियों की महिमा का शास्त्रों में बहुत उल्लेख है।

ये पुरुषों ने लिखे हैं शास्त्र। और इन्होंने इस बात का तो बहुत उल्लेख किया कि स्त्रियों को साध्वी होना चाहिए, सती होना चाहिए; पुरुषों की कोई चर्चा नहीं की इन्होंने, कि इनको भी सता होना चाहिए! स्त्रियों को समझाया कि मर जाओ अगर पति मर जाए--यही प्रेम की कसौटी है। मगर किसी पति को नहीं कहा कि तू भी मर जाना अपनी पत्नी के पीछे। एकाध तो सता होता! बस ढांढन सती की झांकी सजाई जा रही है। कोई ढांढू की भी तो सजाई जाती! एकाध भोंदू तो गिर जाता चिता में, भूल-चूक से भी! मगर नहीं, पांच हजार साल के इतिहास में एक भोंदू ने यह काम नहीं किया। गरीब स्त्रियां, इन शास्त्रज्ञों के हाथ में फंस गई हैं। ये पुरुषों के लिखे हुए शास्त्र हैं, ये प्रशंसा क्यों नहीं करेंगे! ये प्रशंसा कर रहे हैं उन स्त्रियों की जो पुरुषों पर मरने को तैयार हैं। और पुरुषों ने इंतजाम किया कि जिंदा हम रहें तो तुम जिंदा रहो; हम मर जाएं तो पुरुषों को शक है कि हमारे मरने के बाद कहीं तुम किसी से विवाह न कर लो। तुम हमारी संपत्ति हो! तुम्हें हमारे साथ ही समाप्त हो जाना चाहिए। संपत्ति को क्या अधिकार है मालिक के मर जाने के बाद जिंदा रहने का?

पति का अर्थ ही मालिक होता है। स्त्री को कहते हैं दासी। और पति? वह मालिक है, स्वामी। पहले ही से पुरुष यह काम करता रहा और स्त्रियों को समझाता रहा कि हम पुरुष हैं, हमें सब तरह की स्वतंत्रता है। तुम्हारा गौरव तो इसी में है--समर्पण। तुम तो डूब मरो। तुम तो जीवन भर भी अपना जलाओ और अगर हम मर जाएं तो हमारे साथ मर जाओ।

पुरुष को हक है कि एक नहीं, कई स्त्रियां रखे। मुसलमान चार स्त्रियां रख सकते हैं। मोहम्मद ने खुद नौ विवाह किए। मगर यह मोहम्मद तो कुछ भी नहीं, कृशण ने सोलह हजार स्त्रियां! बेचारे मोहम्मद का कहां हिसाब, कहां किस हिसाब में आते हैं! तुलना कर ही नहीं सकते। सोलह हजार स्त्रियां!

पुरुष जो करे, ठीक! पुरुष की दुनिया है यह। अब तक रही है, आगे नहीं रहनी चाहिए। स्त्री और पुरुष का समान अधिकार है। और दोनों को सब तरह से समानता मिलनी चाहिए। न तो पतिव्रता होने की कोई जरूरत है, न पतनीव्रता होने की कोई जरूरत है। काफी अनाचार हो चुका इन शब्दों की आड़ में।

प्रेम करो! प्रेम से जीओ! और प्रेम से जो सहज-स्फूर्त हो, वह शुभ है। लेकिन ऊपर से आचरण आरोपित नहीं होना चाहिए। सुशीला, पुरुषों के शास्त्रों से थोड़ा सावधान रहना। स्त्रियों ने कोई शास्त्र नहीं लिखे, लिखने ही नहीं दिए। पढ़ने नहीं दिए तो लिखने तो क्या देंगे! मनाही कर दी स्त्रियों को कि वेद पढ़ने की मनाही है। कुरान पढ़ने की मनाही है। जब पढ़ने ही नहीं देंगे तो लिखने का तो सवाल ही नहीं उठता।

अब ये सब जाल तोड़ो, यह पागलपन छोड़ो। प्रेम जरूर करो, लेकिन प्रेम समानता में मानता है और प्रेम स्वतंत्रता में मानता है। प्रेम गुलामी नहीं है। न तो खुद गुलाम होता है प्रेम, न दूसरे को गुलाम बनाता है। प्रेम खुद भी मुक्त होता है, दूसरे को भी मुक्त करता है। प्रेम तो मुक्तिदायी है। प्रेम तो मोक्ष है।

रहिमन धागा प्रेम का