एक माँ की पीड़ा
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रमेश बेटा दरवाजा खोल मैं पागल नहीं हूँ...बहू..बेटा खोल दो दरवाजा ,दम घुट रहा है यहाँ मेरा...मैं मर जाऊँगी।
कमजोर-कांपती हुई आवाज और दरवाजे को पीटने की आवाज सुनकर,पहली बार रमेश के घर आए उसके के सहकर्मी मित्र ने पूछा कौन रो रहा है रमेश!!कोई कमरे में बंद है क्या???
रमेश और उसकी पत्नी ने मुँह बनाते हुए कहा..अरे कुछ नहीं कल से माँ ज्यादा परेशान करने लगी,कपड़े फाड़ रही हैं,पत्थर या जो कुछ भी हो हाथ में उसी से हमें मार रही है।माँ हैं,पागल खाने तो भेज नहीं सकते!! तुम आ रहे थे इसलिए इन्हें थोड़ी देर के लिए कमरे में बंद कर दिया,कही तुम्हारे ऊपर कुछ ना फैंक दें...।
ये सुनकर रमेश के मित्र ने कहा कोई बात नहीं रमेश उन्हें बाहर लाओ,कुछ नहीं होगा..किन्तु रमेश और उसकी पत्नी माँ को बाहर निकालने के लिए तैयार ही नहीं थे।किन्तु उनके मित्र को ये बात अजीब लगी,उधर माँ का खटखटाना और रोना जारी था,दोनों पति-पत्नी बीच-बीच में माँ को चुप रहने की हिदायत देकर आ रहे थे,मौका देखकर रमेश के मित्र ने पुलिस को मैसेज कर दिया।दस-पन्द्रह मिनिट बाद पुलिस को देख कर रमेश और उसकी पत्नी भौचक्के रह गए।उन्हें समझ आ गया कि मित्र महोदय ने पुलिस बुलाई है...गुस्सा बहुत आया पर क्या करते,पुलिस के दबाव के कारण उन्हें माँ का कमरा खोलना पड़ा।
कमरे की हालत बयां कर रही थी बेटे और बहू द्वारा माँ पर शोषण की दास्तां...खाट से बंधी मक्खियाँ चिपटी हुई,उलझे बाल,भूख से बेहाल,गन्दगी के साम्राज्य के बीच तिल-तिल मरती माँ..शायद कई दिनों..कई महीनों या कई सालों से धूप को तरसती..आँखें चौंधियाती,कृश-काय,क्षीण-वपू..सच में वो माँ ही थी जो मरणातुर थी..किन्तु इस उम्र में भी, शोषित थी बेटे-बहू द्वारा।
उन्हें देख रमेश के मित्र और पुलिस देख इकट्ठे हुए पडौसीयों की आँखें नम हो गई माँ की ये अवस्था देख ,पुलिस वाले भी आँसू ना रोक सके।