पत्तों से गिर टपकीं बूंदें,थप थप पावों से उचकी बूंदें
बचपन के मतवाले वो दिन,भोले भाले प्यारे पल छिन
गुड़ियों के सपनों की रातें,ना लौटीं फिर वो बरसातें
वो मीठी सी बूंदें चखना,अचरज से बारिश को तकना....
कागज़ की वो नाव चलाना,छींक मारते घर को आना.
मम्मी की मीठी झिड़की से,टॉवेल से बालों को सुखाना
फिर से सबकी नज़र बचा कर,चुपके से फिर भीगने जाना
इसीलिए कहती हूं मित्रों, कितने भी तुम बड़े हो जाना
बचपन भले ही पीछे छुटे,
मासूमियत से कभी बाहर न आना
सच्चे लबों पे रब हँसता है,भोलेपन में रब बसता है...!!
.