लंबे इंतेज़ार के बाद आखिर मैंने अपनी बेटी के लिए नया कपड़ा ले ही लिया। जब मैंने उसके कपड़ों के लिए दुकानदार को 5 रुपये के 60 नोट दिए तो वो मुझपर बिगड़ गया और पूछने लगा कि क्या मैं कोई भिखारी हूँ। मेरी बिटिया उसकी आवाज़ से डर गई और रोने लगी और उसने कसकर मेरा हाथ पकड़ लिया, मैंने उसके आँखों से आँसू पोछा।
मैंने दुकानदार से कहा, “हाँ, मैं भिखारी हूँ। दस साल पहले मैंने अपने सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं भीख माँगकर ज़िंदा रहूँगा। लेकिन, जब वो रात की गाड़ी पुल से नीचे गिरी तो मैं पता नहीं कैसे बच गया। मैं ज़िंदा था पर अपाहिज हो चुका था, मेरा छोटा बेटा अक्सर मुझसे पूछता है कि मैंने अपना दाहिना हाथ कहाँ खो दिया और मेरी बेटी सुमइय्या मुझे खाना खिलाती और कहती कि बाबा आप के लिए एक हाथ से काम करना कितना मुश्किल होता होगा।
अब मैं अपनी बेटी को एक सिग्नल पर खड़ा कर के भीख माँगने के लिए जाऊँगा, तब तक वो मेरा इंतेज़ार करेगी। मैं भीख माँगते वक्त दूर से उसे देखता रहूँगा। मुझे शर्म आएगी जब वो मुझे अपने हाथ किसी दूसरे के सामने फैलाते हुए देखेगी। लेकिन मेरी बिटिया मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ती है, उसे लगता है कि ये बड़ी गाड़ियाँ एक दिन कहीं मुझे कुचल ना दें, इसलिए वो मेरे साथ साए की तरह रहती है। शाम को पैसे लेकर मैं उसका हाथ पकड़े घर लौटता हूँ, रास्ते में मैं कोई भी चीज़ खरीदता हूँ तो थैला वही उठाती है। हम दोनों बाप-बेटी बारिशों में साथ भींगते हैं।
जब किसी दिन मुझे कोई भीख नहीं देता तो हम दोनों ख़ामोशी से घर लौट जाते हैं। ऐसे दिनों में मुझे लगता है कि मैं जाकर कहीं मर जाऊँ पर जब मेरे बच्चे मेरा एक हाथ पकड़कर सोते हैं तो मुझे लगता है ज़िन्दगी इतनी बुरी भी नहीं है। हाँ, तब बहुत बुरा लगता है जब मेरी बच्ची अपना सिर झुकाए सिग्नल पर मेरा इंतेज़ार करती है, जब मैं उससे भीख माँगते वक़्त आँख नहीं मिला पाता हूँ।
लेकिन आज वो दिन नहीं है, आज मेरी बिटिया के तन पर नए कपड़े हैं, आज मेरी बिटिया खुश है, आज उसका पिता एक भिखारी नहीं है, आज वो एक राजा है और उसकी बिटिया एक राजकुमारी।
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