Sonu Rajput Official's Album: Wall Photos

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किसी भी शुभ कार्य का आरंभ करने के पहले हिंदू धर्म में स्वास्तिक का चिन्ह ने बनाकर उसकी पूजा करने का महत्व है मान्यता है कि ऐसा करने से सभी कार्य सफल होते हैं स्वास्तिक के चिन्ह को मंगल का प्रतीक माना गया है स्वास्तिक शब्द को सू और अस्ति का मिश्रण योग माना जाता है यहां शु का अर्थ है शुभ और अस्थि से तात्पर्य है होना अर्थात स्वास्तिक का मौलिक अर्थ है शुभ हो यानी कल्याण हो स्वास्तिक चिन्ह में एक दूसरे को काटते हुए दो सीधी रेखाएं होती है जो आगे चलकर मुड़ जाती है इसके बाद भी यह रेखाएं अपने सिरों पर थोड़ी आगे की तरफ मुड़ी होती है स्वास्तिक की आकृति दो प्रकार की हो सकती है, प्रथम स्वास्तिक इसमें रेखाएं इंगित करती हुई हमारी दाई और मूर्ति है इसे दक्षिणावर्त स्वास्तिक कहते हैं दूसरी आकृति पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारी बाईं ओर मुड़ती है इसे वामावर्त स्वस्तिक कहते हैं। स्वास्तिक को 7 अंगुल 9 अंगुल और 9 इंच के प्रमाण में बनाए जाने का विधान है मंगल कार्यों के अवसर पर पूजा स्थान और दरवाजे के चौखट स्वास्तिक बनाने की परंपरा है यही कारण है कि किसी भी शुभ कार्य के दौरान स्वास्तिक का पूजन करना अति आवश्यक माना गया है।

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