आज मैं लिख रहा हूँ उन कैंसर मरीजों के बारे में,जो मानसिक रोग से पीड़ित हैं।मानसिक रोगी जहाँ डर का प्रतीक है वहीं इन्तहाई दया का पात्र है।यदि उसको कोई असाध्य रोग कैंसर आदि हो जाये तो समझो कि वह मर गया।मैं,स्वयं अपनी मानसिक रोगी पत्नी को कैंसर हो जाने के बाद,उनके इलाज में जो जो परेशानियां मुझे आईं और मैं उनका बेहतरीन इलाज करवा पाने में असमर्थ रहा,उसमें बहुत बड़ा भाग,उनके मानसिक रोग शीजोफ्रेनिया का भी था और उनके इस असाध्य बीमारी में जीवित रहने का व सहन करने में भी बहुत बड़ा योगदान मानसिक रोग का था।मेरी पत्नी शोभा बहुत ही सीधी सादी व भोली भाली थीं,उनको रिश्तेदारी निभाने में जैसे औरतें भाइयों बहनों रिश्तेदारों,पड़ोसियों परिचितों को सन्तुष्ट रखने के लिये दोहरा तिहरा चौहरा किरदार निभाती हैं,एैसा उनमें कुछ भी नहीं था।उनको उनके भाई-बहन,रिश्तेदार,परिचित,मित्र सब मूर्ख ही बनाते थे।वो आजीवन पहाड़,पहाड़ी,भाइयों-बहनों,रिश्तेदारों को या जो भी उनके सामने मीठा व्यवहार कर देता हो,उसका गुणगान करते,याद करते रहीं।कुमाऊँ के लोगों का एैसा दम भरती थीं कि उनको जरा सा कम कोई कह दे तो मुझसे भी भयंकर हो कर लड़ जाती थीं,मुझे मारती पीटती,नोंचती थीं,मगर प्रेम एैसा करती थीं कि एक पल को भी अलग रहना उनके लिये असंभव था।न ही किसी को मेरेे साथ देखना पसन्द करतीं थीं न ही किसी का मुझे छूना,मुझसे बात करना उन्हें बिल्कुल बर्दाश्त नहीं था,मैं जानता था कि यह उनका मुझसे निश्छल और अगाध प्रेम है।एक अबोध बालक की तरह भोलीभाली थीं।मैं समझाता था,मगर एक बच्चे की जैसे माँ सेवा करती है वैसे मैं ने उनकी हर सेवा की।मगर,सारा जीवन मुझसे इस बात पर लड़ती थीं।मात्र,मृत्यु से चन्द दिनों पहले वह समझीं,कहने लगीं,मेरा कोई नहीं है,मुझसे कोई दीदी-जीजाजी,चचेरे तयेरे भाई मिलने नहीं आये जब मम्मी-पापा नहीं रहते तो कोई कोई अपना नहीं रहता,सिवाय पति यानि मेरे।मैं उन्हें सामाजिक व्यवहार सिखाता था,मगर अफसोस कि वो नहीं समझीं।काश वह थोड़ी सामाजिक और मेरी मानने वाली होतीं तो अभी कम से कम दो-चार साल और जीवित रहतीं या दोबारा कैंसर होता ही नहीं।मुझे दुख है कि वह चलीं गईं और मुझे अकेला अपनी यादों के सहारे जीवन जीने को छोड़ गईं।अब,मेरा ये इरादा है कि कोई एैसा रिसर्च सेंटर+अस्पताल हो,कि जिसमें उनके जैसे मानसिक रोगी,जो असाध्य रोगों से ग्रस्त हों और मेरे जैसे अभाव ग्रस्त हों,उनका प्राइवेट वार्ड टाइप निःशुल्क इलाज हो,मरीजों की मर्जी का खाना-पीना,पहनना,ओढ़ना हर वस्तु उपलब्ध हो,ताकि एैसे मरीज जल्दी से स्वस्थ हो कर परिवार,समाज और देश की सेवा कर सकें।जय हिन्द वन्दे मातरम् हर हर महादेव