jareen jj's Album: Wall Photos

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इन्सान बनो...ओशो का संदेश धर्म नही , धार्मिकता है , हिन्दु , मुस्लिम , सिक्ख , इसाई , पारसी , यहूदी जैसे संप्रदाय नही , प्रेम और ध्यान है , मनुष्य को टुकडो मे बांटना नही , अखंड मनुष्य है .......

"मनुष्य धर्मों की मानसिक गुलामी मे जी रहा है। इन्सान बनो।"

जब तक परिवारो मे संस्कारों से बच्चे हिन्दु मुसलमान शिख ईसाई बौद्ध जैन बनते रहेंगे तबतक ये धन्दा चलता रहेगा .पंडित पुरोहित राजनेताओं का मंदिर मज्जिदो का धन्दा और इनपर आधारित व्यवस्था के शोषण का धन्दा भी चलता रहेगा।

सभी धर्म अच्छे हैं...लेकिन उसको मानने वाले अंधे अनुयायी उसे बुरा बना देते हैं ! सारी दुनिया के सभी तथाकथित धार्मिक लोग ऐसे ही वचनों को सुनना पसंद करते हैं और इन सभी धार्मिक संगठनों के दावेदार तथा राजनीतिज्ञ ऐसे ही वचनों को और वक्तव्यों को बार बार दोहरा कर सभी को खुश करने के लिए अपने लिए नये अनुयायी और शिष्यों की भीड़ जमा करने में कामयाब हो जाते हैं ! यह बहुत पुराना रामबाण और कामयाब नुस्ख़ा है मंदबुद्धि लोग ऐसे वचनों से बहुत प्रभावित होते हैं ! इसिलिए अधिकतर लोग जीवन भर इसी गलतफहमी के शिकार रहते हैं कि सभी धर्म अच्छे हैं तो हमारा धर्म भी अच्छा है हम बड़े सौभाग्यवान हैं कि हिन्दू के घर में हमारा जन्म हुआ या कि हम बहुत ख़ुशनसीब हैं कि मुस्लिम घर में पैदा हुए हैं इसी तरह सभी धर्मों के मानने वाले अनुयायियों को बचपन से ही घर परिवार वाले या पंडित मौलवी राजनेता यह बात उनके कान में फूँक देते हैं और वे आश्वस्त हो जाते हैं फिर उन्हें किसी अन्य धर्म की किताबों का अध्ययन करने की या अलग से सत्य की खोज करने की ज़रूरत ही महसूस नहीं होती क्योंकि वे तो मानते ही हैं कि उन्हें पहले से ही पता है कि उनका धर्म सबसे अच्छा है और सभी धर्म प्यार मोहब्बत की और शांति की शिक्षा देते हैं जब बड़े बड़े राजनेता महात्मा गाँधी जैसे लोग कहते हैं कि ईश्वर अल्लाह तेरे नाम सबको सम्मति दे भगवान यह प्रार्थना आप सबने भी सुनी होगी मैं भी इसे बचपन से सुनता रहा हूँ लेकिन लगता नहीं है कि लोगों को सम्मति उपलब्ध हुई है बरसों से गाँधी जी और उनके सभी अनुयायी इसे सुबह शाम दोहराते रहे हैं और जैसे ही अंग्रेज़ों ने भारत छोड़ा इन सब अनुयायियों ने देश का बँटवारा किस सम्मति से लाखों करोड़ों लोगों को क़त्लेआम कर के किया सारी दुनिया इसकी गवाह है ! अगर हमारे सारे धर्म अच्छे हैं और प्रेम अहिंसा तथा शांति की बात कहते हैं तो फिर इतना खूनखराबा बलात्कार लूटमार और अशांति कहाँ से पैदा हो गई ? यह सब इन्हीं अच्छे धर्म को मानने वालों ने इतना बुरा कैसे किया क्यों किया ? इस पर हमें पुन: विचार करना चाहिए ! पहली बुनियादी बात तो यह है कि जिन्हें लोग धर्म समझते हैं हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई,जैन,बौद्ध वग़ैरह वग़ैरह ये सब धर्म नहीं सम्प्रदाय हैं ! और सम्प्रदाय तो घर बैठे माँ बाप से आपको बचपन से ही मुफ़्त में मिल जाता है ! लेकिन अधिकतर लोग इन्हें ही धर्म समझते हैं ! जब आप किसी सरकारी काग़ज़ातों पर अपने धर्म का नाम लिखते हैं तो यही तो लिखते हैं न कि मैं मुस्लिम हूँ ,हिन्दू हूँ ,इसाई हूँ,सिक्ख,जैन या बौद्ध हूँ यही तो आपको लिख कर अपने हस्ताक्षर करने पड़ते हैं न ? अधिकतर लोग इन सम्प्रदायों को ही ग़लती से धर्म समझे बैठे हैं ! लेकिन धर्म की तो खोज हमें अकेले ही करनी पड़ती है ! धर्म का अर्थ होता है स्वभाव ! वस्तु का स्वभाव उसका धर्म है ! आग का स्वभाव जलाना है और पानी का स्वभाव तरल होना है ! महावीर का ही वचन है शायद मैंने ओशो से कई बार सुना है वत्थू सहावो धम्मो वस्तु का स्वभाव उसका धर्म है ! हमें भी अपने स्वभाव को जानने के लिए ही ध्यान साधना से गुजरना पड़ता है सदगुरू या बुद्ध पुरुष हमें अपने स्वभाव को जानने के लिए ही उपदेश देते हैं ! क्योंकि सभी सम्प्रदाय हमें अपने स्वभाव के विपरीत किसी अन्य ईश्वर अल्लाह गाड की तरफ कहीं हमसे दूर पर को परमात्मा को मानने के लिए बाध्य कर देते हैं किसी मंदिर,मस्जिद,चर्च,गुरुद्वारों से जोड़ देते हैं और इसी वजह से हम अपने से अलग कहीं किसी और पर विश्वास करना सीख जाते हैं और स्वयं को बिलकुल ही विस्मृत कर देते हैं ! जब भी कोई हम से पूछता है कि आप कौन हैं तो हम फ़ौरन अपना नाम बताते हैं अपनी जाति बताते हैं किस गाँव या शहर के हैं ये बताते हैं या व्यापारी हैं कि वक़ील हैं कि शिक्षक हैं हम इन सब बातों को अपना होना बताते हैं जबकि यह सब हमारे मन के ऊपर समाज ने लेबल की तरह चिपका दिया है ! हम कभी यह नहीं कहते कि मुझे नहीं मालूम कि मैं कौन हूँ ? क्योंकि यह सारे सम्प्रदाय स्वयं को जानने की या सत्य को जानने की बात ही नहीं करते ये तो बस इतना समझाते हैं कि अतीत में जिन्हें सत्य उपलब्ध हुआ है हमें उसकी बातों पर विश्वास करना चाहिए उसे ही आखरी पैग़म्बर मानना चाहिए या ईश्वर का अवतार मान कर उसकी पूजा या उससे प्रार्थना करना चाहिए वही हमें मरने के बाद स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने में सहायता करेगा और अगर हमने उसकी बात नहीं मानी तो हमें नर्क में दोज़ख़ में अनंत काल तक कष्ट भोगना पड़ेगा इस तरह की बातें लोगों को बचपन से ही सिखाई जाती है ! यही लोभ और भय पर इन तथाकथित धर्मों का बुनियाद आधार है जिस तरह पशुओं को लोभ और भय के द्वारा क़ाबू किया जाता है ऐसे ही अधिकतर मनुष्यों को मानसिक रूप से इन सम्प्रदायों ने धर्म के नाम पर सदियों से गुलाम बना रखा है इन अंधविश्वासी मान्यताओं के कारण लोगों के भीतर से सोच विचार की शक्ति ही क्षीण हो चुकी है ! अगर ये सब धर्म के मसीहाओं ने पैग़म्बरों ने अच्छी बातें कही है तो फिर जीवन भर जे़ कृष्णमूर्ति और सदगुरू ओशो क्यों हमें इन सभी सम्प्रदायों से और इनके शास्त्रों से मुक्त होने के लिए सतत बोलते रहे ? इस पर भी हमें विचार करना चाहिए ! जो धर्म हमें सत्य की या स्वयं की खोज के लिए प्रेरित नहीं करता हो वह धर्म तिथि बाह्य हो चुका है आउट आफ डेट हो चुका है अब विज्ञान ने हमें आधुनिक वाहन देकर तथा इंटरनेट के द्वारा और कई नई तकनीकि देकर बैलगाड़ी घोड़े और ऊँट की सवारी से मुक्त कर दिया है लेकिन हम धर्म के मामले में अभी भी मनुवाद की ब्राह्मण वैश्य और शूद्र वाली वर्ण व्यवस्था का अभिशाप ढो रहे हैं हजारों साल पुरानी इस व्यवस्था से भारतीय मन अभी भी मुक्त नहीं हो सका है और इसी के कारण हज़ार साल की ग़ुलामी पूरे भारत को भुगतनी पड़ी है ! दूसरी तरफ इस्लाम के कट्टर पंथियों की पूरी कोशिश चल रही है कि वह चौदह सो साल पुराना जाहिलों वाला शरिया कानून सभी मनुष्यों पर ज़बरदस्ती थोपने में कामयाब हो जाये ! यह सब देखते हुए भी सभी हिन्दू मुस्लिम चुप हैं कोई किसी का विरोध नहीं करता है ! लोग मनोरंजन में उलझे हुए हैं ! अभी मैंने मशहूर फ़िल्म अभिनेता इरफ़ान खान की कुछ मुल्लाओं से बातचीत सुनी इरफ़ान खान को ये कौम कभी नहीं समझ सकती ! इरफ़ान खान ने बिलकुल साफ़ साफ़ वक्तव्य दिये हैं कि किसी भी जानवर का क़ुरबानी के नाम पर गला काट कर कोई भी पुण्य या सवाब नहीं कमा सकता ! क्योंकि बकरा,गाय,या ऊँट ये कोई चीज़ नहीं है ये कोई वस्तु नहीं है ! फिर भी इन मुल्लाओं की समझ में सीधी सी बात नहीं आती ये हर इक बात में क़ुरान का हवाला देते हैं या पैग़म्बर मोहम्मद साहब का हवाला देते हैं वह ज़माना गुज़र चुका है ! पूरे यूरोप और अमेरिका जैसे कई देशों में करोड़ों मुस्लिम रहते हैं वहाँ की सड़कों पर या मुहल्ले में कोई भी मुस्लिम समाज बकरा गाय या ऊँट नहीं काटता सभी लोग दुकानों से माँस ख़रीद कर बकरी ईद मनाते हैं फिर सिर्फ़ भारत में ही क्यों ये लोग भीड़ भाड़ में सड़कों पर इन पशुओं की गर्दन काट कर क़ुरबानी देते हैं ये लंदन,न्यूयार्क या पेरिस में ऐसा क्यों नहीं करते ? चौदह सो साल पहले उस वक़्त का आज के दौर से तालमेल करना ज़रूरी नहीं है अब तो गाय,भैंस,बकरी चराने वाला भी मोबाइल फ़ोन जेब में रखता है अब आपको एक चिट्ठी किसी को भेजने के लिए हज़ार मील घोड़े पे सवार होकर जाने की ज़रूरत नहीं है आज तो मोबाइल और आई फ़ोन ने हज़ारों मील की यात्रा को ख़त्म कर दिया है अब तो आप एक मिनट में बिना काग़ज़ और स्याही के हज़ारों मील दूर अपना प्रेम पत्र फ़ौरन भेज सकते हैं आप विज्ञान की इस तकनीक से सहमत हैं और उसका उपयोग करने में ज़रा भी नहीं झिझकते हैं तो फिर बाबा आदम के ज़माने के धर्म को क़ानून को क्यों अभी तक घसीट रहे हैं ! किसी की उँगली के इशारे से चाँद के टुकड़े होने वाली बात को आज के आदमी पर क्यों थोपना चाहते हैं ! या कि ये मुल्ला मौलवी लोग समझना ही नहीं चाहते हैं ? अधिकतर मुस्लिम तो दोज़ख़ के भय से इतने डरे हुए हैं कि वे ऐसी बात सुनना ही नहीं चाहते ! ज़रा ज़रा सी बात में उनका ईमान डग मगाने लगता है और मुस्लिम कोई आलोचना सुनते ही दंगा फ़साद खूनखराबा करने पर उतर आते हैं किसी ने काग़ज़ पे कार्टून बना दिया तो दंगे होने लगे अनेक देशों में इतनी सी बात पर इतना फ़साद ? इसीलिए सदगुरू ओशो ने सभी धार्मिक ग्रन्थों के ऊपर प्रवचन दिये उनकी आलोचना भी की बाईबिल पर अमेरिका के रजनीशपुरम में ओशो ने जीसस पर कड़ी आलोचना की तो इसाईयों के पोप और रोनाल्ड रीगन ने मिलकर ओशो के कम्यून रजनीश पुरम को ही नष्ट कर दिया ये कैसी रुग्ण मानसिकता है जो किसी की आलोचना भी बर्दाश्त नहीं कर सकती ? और इसीलिए ओशो ने क़ुरान पर प्रवचन नहीं दिये मैंने भी दो तीन बार निवेदन किया था दूसरे कुछ मित्रों ने भी कई बार ओशो को बँबई और पूना में क़ुरान पर बोलने के लिए कहा पर ओशो हमेशा मुस्कराकर टाल दिया करते आख़िरी दिनों के एक अंग्रेज़ी प्रवचन में ओशो ने साफ़ साफ़ कह दिया कि क़ुरान में बोलने लायक कुछ भी नहीं है कुरान कोई धार्मिक ग्रन्थ नहीं है जिस पर टीका की जाये इस तरह की कुछ बातें संक्षिप्त में कही ! क्योंकि ओशो कोई दंगा फ़साद या ख़ूनखराबा नहीं चाहते थे जो लोग नहीं समझ सकते उनसे बात करना ही उचित नहीं है क्योंकि एक ही बात को समझने के लिए अलग अलग पहलू से उसकी व्याख्या हो सकती है विचार और तर्क से सत्य को नहीं समझा जा सकता लेकिन विचार और तर्क से आप असत्य से मुक्त हो सकते हैं ! स्वामी कृष्ण वेदांन्तजी

1977 की बात है,
मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका आई जिसमें कहा गया था कि तमिलनाडु में पेरियार की मूर्तियों के नीचे जो बातें लिखी हुई हैं, वे आपत्तिजनक हैं और लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं इसलिए उन्हें हटाया जाना चाहिए।
याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ईरोड वेंकट रामास्वामी पेरियार जो कहते थे, उस पर विश्वास रखते थे इसलिए उन के शब्दों को उन की मूर्तियों के पैडेस्टर पर लिखवाना गलत नहीं है।

पेरियार की मूर्तियों के नीचे लिखा था- ‘ईश्वर नहीं है और ईश्वर बिलकुल नहीं है।
जिस ने ईश्वर को रचा वह बेवकूफ है, जो ईश्वर का प्रचार करता है वह दुष्ट है और जो ईश्वर की पूजा करता है वह बर्बर है।

#ग्रेटपेरियार #नायकर के #ईश्वर से #सवाल :
1. क्या तुम कायर हो जो हमेशा छिपे रहते हो, कभी किसी के सामने नहीं आते?
2. क्या तुम खुशामद परस्त हो जो लोगों से दिन रात पूजा, अर्चना करवाते हो?
3.क्या तुम हमेशा भूखे रहते हो जो लोगों से मिठाई, दूध, घी आदि लेते
रहते हो?
4. क्या तुम मांसाहारी हो जो लोगों से निर्बल पशुओं की
बलि मांगते हो?
5. क्या तुम सोने के व्यापारी हो जो मंदिरों में लाखों टन सोना दबाये बैठे हो?
6. क्या तुम व्यभिचारी हो जो मंदिरों में देवदासियां रखते हो ?
7. क्या तुम कमजोर हो जो हर रोज होने वाले बलात्कारों को नही रोक पाते?
8. क्या तुम मूर्ख हो जो विश्व के देशों में गरीबी-भुखमरी होते हुए भी अरबों रुपयों का अन्न, दूध,घी, तेल बिना खाए ही नदी नालों में बहा देते हो?
9. क्या तुम बहरे हो जो बेवजह मरते हुए आदमी, बलात्कार होती हुयी मासूमों की आवाज नहीं सुन पाते?
10. क्या तुम अंधे हो जो रोज अपराध होते हुए नहीं देख पाते?
11. क्या तुम आतंकवादियों से मिले हुए हो जो रोज धर्म के नाम पर लाखों लोगों को मरवाते रहते हो?
12. क्या तुम आतंकवादी हो जो ये चाहते हो कि लोग तुमसे डरकर रहें?
13. क्या तुम गूंगे हो जो एक शब्द नहीं बोल पाते लेकिन करोड़ों लोग तुमसे लाखों सवाल पूछते हैं?
14. क्या तुम भ्रष्टाचारी हो जो गरीबों को कभी कुछ नहीं देते जबकि गरीब पशुवत काम करके कमाये गये पैसे का कतरा-कतरा तुम्हारे ऊपर न्यौछावर कर देते हैं?
15. क्या तुम मुर्ख हो कि हम जैसे नास्तिकों को पैदा किया जो तुम्हे खरी खोटी सुनाते रहते हैं और तुम्हारे अस्तित्व को ही नकारते हैंं?