सुनो ना
प्रेम....
शब्द नहीं...
घटना नहीं...
दिखता नहीं...
कहा भी नहीं जाता...
सिर्फ महसूस होता है...
दिल की गहराइयों में, एक दम गहरे...
जिसमें डूबना होता है...
फिर कुछ होश ही नहीं रहता, एक ऐसा आनन्द, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता...
जो शब्दों में नहीं समाता, सिर्फ महसूस किया जा सकता है...
पर शर्त यह है कि प्रेम बेशर्त हो...
जिसमें शब्द न हो, अपेक्षा न हो...
जो कहा नहीं सिर्फ़ किया जाये...
आत्मा से... दिल की गहराइयों से...
जो निरंतर हो...
जिसमें तड़प हो...
समर्पण हो...
प्यार हो...
~ ओशो ~