वो दिन कितने अच्छे थे, जब दिल हमारे सच्चे थे
वो बचपन कितना सुहाना था,जब हम छोटे बच्चे थे
जब मिट्टी के घर बनाते थे,हम दिनभर पतंग उड़ाते थे
जब मम्मी से आंख बचाकर हम बाहर खेलने जाते थे
जब हम ही चोर हम सिपाही हम ही राजा बनते थे
जब गिल्ली डण्डा खेलने, हम दो टीमों में बंटते थे
जब लाल पीले हरे पंख, हम कापी में दबाकर रखते थे
जब सांप सीढी और चिड़िया उड़,हम खेलते नहीं थकते थे