प्रदीप कुमार Pradeep kumar Jain (Advocate)'s Album: Wall Photos

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From my diary 090817

क्या माता पिता इसी के काबिल हे?

एक समय के रेमंड मैन आज दाने दाने को मोहताज. उनके चित्र को देख के समझा जा सकता हे की बो कितने निराश महसूस कर रहे होंगे!
पूरी दुनिया को अपने प्लेन से नापने वाले डॉ. विजयपत सिंघनिया के पास अपनी खुद की कार नहीं हे, उनके वकील ने इलज़ाम लगाया की उनके क्लाइंट ने दस हज़ार करोड़ के शेयर अपने बेटे के नाम किये लेकिन उन्हें पैसे पैसे के लिए मोहताज कर दिया गया? कुछ दिन पहले उनके परिवार के दूसरे सदस्यों ( अल्प आयु ) ने उन पर पक्षपात का आरोप लगाया था.
मुझे नहीं पता की दूसरे पक्ष की कहानी क्या हे लेकिंन फिर भी क्या बो इसके लिए जिम्मेदार हे? क्या उनके भरोसे को तोडा गया हे बो भी उस समाज में जहा पिता को भगवान का दर्जा दिया जाता हे!
तो क्या ये सब मूल्यों की दुहाई माध्यम वर्ग के लिए?
क्या लक्ष्मी के सामने मूल्यों का कोई मूल्य नहीं हे?
मेने सुना की जब लक्ष्मी अच्छे हाथो में आती हे तो वह वहां रहना चाहती हे और बढ़ना चाहती हे तो क्या ये गलत हे?
कौन हे इसके लिए जिम्मेदार, क्या माता पिता? क्या संतान? या फिर भारतीय समाज? या फिर इंसान के कर्म?
मेरे हिसाब से इसके लिए सब पक्ष जिम्मेदार हे.

बो माता पिता जो जिंदगी भर अपनी औलाद के लिए ही कमाते हे की उसको सुबिधाये मिले चाहे उसके लिए उनको अनैतिक साधनो और अन्याय का सहारा लेना पड़े. बो भूल जाते हे उनका समाज के लिए भी कुछ कर्तव्य हे, काश अगर बो 100 रुपया अपने बच्चो पे खर्च करते तो 5 रुपया अनजान बच्चो पे भी खर्च कर देते. अगर ऐसा करे तो शायद ऐसे दिन ना आये!

बो बच्चे जो ये भूल जाते हे की उनके माता पिता ने उनके लिए अपने खून को पानी बना दिया और खुद की जिंदगी को भूल गए. बो भूल जाते हे की बो आज बो ही कर रहे जो उनके माता पिता ने किया और कल बो बोहि भोगेंगे जो उनके माता पिता भोग रहे हे. कर्म हमेशा लौट के आता हे

अपना भारतीय समाज जो बाते बहुत बड़ी बड़ी करता हे लेकिन हमको ये नहीं सिखाता की समाज एक बड़ा परिवार हे कभी उसके लोगो की सहायता करना चाहिए. जो सिर्फ अगली पीडिओ के लिए संचय करना सिखाता हे. अमेरिका में माता पिता को भगवान नहीं समझा जाता हे, ना ही माता पिता सिर्फ बच्चो के लिए कमाते हे इसलिए सबसे ज्यादा दानदाता बहा हे.
हमको समझना होगा पैसा पानी की तरह हे, बहता रहेगा तो ताज़ा रहेगा, भगवान की कृपा एक हवा की तरह हे जो सामने वाली खिड़की से आती हे और यदि हम पीछे की खिड़की खोल दे (दुसरो की सहायता कर) तो ये कृपा हमेशा बनी रहती हे. कुछ लोग सोचते हे धन आएगा तो करेंगे, अरे धन नहीं तो जो हे उससे समाज को दो, बो आपकी मुकराहट आपका समय भी हो सकता हे.
में तो समझ गया हू. और आप?
जय हिन्द