#मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने IT एक्ट की धारा 66 A को अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार के विरुद्ध मानते हुए इसे रद्द कर दिया है. संविधान की धारा 19 A के तहत हर नागरिक के पास अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार है.
#गौरतलब है कि IT एक्ट की #धारा 66 A के अनुसार सरकार के पास यह शक्ति थी कि वह सोशल मीडिया पर लिखी गई बात को आपत्तिजनक मानते हुए उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है. पिछले कुछ दिनों में सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने के कारण कई लोगों को जेल भेज दिया गया था. मुंबई की दो छात्राओं को फेसबुक पर कमेंट करने के लिए जेल भेजे जाने के बाद यह मामला तूल पकड़ गया.
#जस्टिस जे चेलामेश्वर और रोहिंटन नरीमन की बेंच इस एक्ट का सरकार द्वारा दुरुपयोग पर फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि आईटी एक्ट साफ तौर पर लोगों के जानने के अधिकार का उल्लंघन करता है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह कानून काफी अस्पष्ट है. यह भारतीय नागरिकों के मूल अधिकार का उल्लंघन करता है.
#कोर्ट ने बेहद कड़ा फैसला लेते हुए इस कानून को #असंवैधानिक ठहरा दिया है. अब इस कानून के तहत किसी को जेल नहीं भेजा जा सकता. इस मामले में याचिकाकर्ता एक एनजीओ, मानवाधिकार संगठन और एक कानून का छात्र श्रेया सिंघल थीं. याचिकाकर्ताओं के इस दावे को कोर्ट ने सही पाया कि यह कानून अभिव्यक्ति के उनके मूल अधिकार का उल्लंघन करता है.
#याचिकाकर्ता श्रेया सिंघल ने इस फैसले पर कहा, 'यह कानून लोकतंत्र विरोधी था. सरकार लोगों को बोलने नहीं देना चाहती. आप वह कंटेंट देखिए जिसके कारण लोगों को जेल भेजा गया है, उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके कारण किसी को जेल में भर दिया जाए. यह फैसला संविधान और जनता दोनों की जीत है' अब किसी को कुछ बोलने या लिखने से पहले यह सोचकर नहीं डरना होगा कि उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है.
#हालांकि सरकार ने इस याचिका के विरोध में कहा था कि यह एक्ट वैसे लोगों के लिए है जो सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक चीजें पोस्ट कर शांति को खतरा पहुंचाना चाहते हैं. सरकार ने कोर्ट में इस एक्ट के बचाव में यह दलील दी थी कि क्योंकि इंटरनेट की पहुंच अब बहुत व्यापक हो चुकी है इसलिए इस माध्यम पर टीवी और प्रिंट माध्यम के मुकाबले ज्यादा नियमन होना चाहिए.
#कोर्ट ने सरकार के तमाम तर्कों को खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुना दिया है. अब सरकार सोशल मीडिया पर डाले गए पोस्ट के लिए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकती. हालांकि सरकार के पास यह अधिकार होगा कि यदि कोई पोस्ट उसे आपत्तिजनक लगता है तो वह उसे हटवा सकती है. कोर्ट ने अपने फैसले में लोहिया का उदाहरण देते हुए कहा, भारत जैसे देश में अभिव्यक्ति की आजादी से किसी सूरत समझौता नहीं किया जा सकता.