Sushmita kapoor's Album: Wall Photos

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ओ रे पथिक,तू हो के व्यथित
क्यों मुड़-मुड़ राह निहारे
देस हुआ बन्दीगृह सरीख़ा
क्यों अब रब को पुकारे

मन के हारे हार भी होती
मन के जीते, जीत भी
सुख से जुड़े ये दुःख के थपेड़े
दे जाते हैं सीख भी
ओ रे पथिक,तू हो के व्यथित
क्यों क्षोभ में दिनो को गुज़ारे
देस हुआ बन्दीगृह सरीख़ा
क्यों अब रब को पुकारे

ये अँधियारे,वो उजियारे,
तेरे खुद के कर्मो की ही देन हैं
छाँव मिली या पाई तपिश,
रंग जीवन के अनेक हैं
ओ रे पथिक, तू हो के व्यथित,
क्यों मन की व्यथा को निखारे
देस हुआ बन्दीगृह सरीख़ा,
क्यों अब रब को पुकारे

लेख़ा-जोख़ा वो रब जाने
क्यों तू हिसाब लगाता है
मन की डोर बांध उस रब से
हम सब का जो विधाता है
ओ रे पथिक, तू हो के व्यथित,
क्यों कर्मो का दोष उभारे
देस हुआ बन्दीगृह सरीख़ा,
क्यों अब रब को पुकारे

ओ रे पथिक,तू हो के व्यथित,
क्यों मुड़ - मुड़ राह निहारे
देस हुआ परदेस सरीख़ा,
क्यों अब रब को पुकारे