समाज का प्रमुख अंग होते हुए भी आज मज़दूरों को उनके प्राथमिक अधिकार से वंचित रखा जा रहा है और उनकी गाढ़ी कमाई का सारा धन शोषक पूँजीपति हड़प जाते हैं।* दूसरों के अन्नदाता किसान आज अपने परिवार सहित दाने-दाने के लिए मुहताज हैं। दुनियाभर के बाज़ारों को कपड़ा मुहैया करने वाला बुनकर अपने तथा अपने बच्चों के तन ढँकनेभर को भी कपड़ा नहीं पा रहा है। सुन्दर महलों का निर्माण करने वाले राजगीर, लोहार तथा बढ़ई खुद गंदी बस्तियों में रहकर ही गरीबी के कारण आर्थिक तंगी के चलते अपनी जीवन-लीला समाप्त कर जाते हैं। कम्पनियों में मजदूरों से ज्यादा काम लिया जाता है महीने की तनख्वाह बहुत कम दी जाती है जिससे एक मजदूर अपने परिवार की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा है किसानों और मजदूरों के लिए समस्याओं का समाधान करने में कोई भी राजनीतिक दल रूचि लेता नजर नहीं आता तभी आज आजादी के बरसों बाद भी किसान मजदूर की हालत बिगड़ी हुई है