राजीव तोमर's Album: Wall Photos

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एक दशक पहले तक गांवों में हाली अमावस्या पर्व पर किसान व ग्रामीण अंचल के लोग आने वाले वर्ष में बेहतर जमाने की कामना के साथ शगुन मनाने के सारे जतन करते थे।
अलसुबह खेतों में जाकर हळ जोते जाते थे, जहां बारिश के बाद फ सल बोने व तैयार फ सल के भण्डारण तक कि प्रक्रिया की जाती थी। किसान अपने घर के बीच आंगन (खळा) में आगामी वर्ष में बोई जाने वाली विभिन्न किस्म के अनाज, तिलहनी व दलहनी फ सलों की पूजा करते थे तथा अन्नदेवता से अगले साल अच्छी पैदावार के साथ लोगों की खुशहाली की कामना करते थे। सोमवार को हाली अमावस्या पर एेसा कुछ भी नजर नहीं आया।
ऐसे लेते थे शगुन
बुजुर्ग लेते थे जमाने के शगुनहाली अमावस्या की अलसुबह गांवों में प्रकृति के जानकार लोग घरों व खेतों के आस-पास पशु-पक्षियों की आवाज व पेड़ों व प्राकृतिक दृश्य के आधार पर आगामी साल बारिश, फ सल पैदावार का अनुमान लगा लेते थे। जो आने वाले समय में सार्थक सिद्ध होते थे। लेकिन अब २१ वीं सदी में सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के बाद गांवों की प्राचीन प्रथाओं व मान्यताओं के प्रति रूचि कम हुई है।
कृषि औजारों की होती थी पूजा
इंटरनेट के युग में अब हाली अमावस्या के महत्व को लोग भूलने लगे हैं। कृषि औजारों की पूजा-अर्चनाकिसान आखातीज तक इस तीन दिवसीय पर्व में खेती के विभिन्न औजारों की पूजा-अर्चना करते थे।
घरों के आसपास बच्चों से बुजुर्ग व्यक्ति हाथ में हळ थामे खेत को जोतता दिखाई देता था। वहीं आसपास के घरों के लोग गांव की कोटड़ी में हथाई करते थे। जहां पर खीच के साथ मीठी खीर (गळोणी) आनंद के साथ खाते थे। अब व्यवयाय के चलते हथाई का क्रेज खत्म हो रहा है।