क्या होगा, अगर कोई व्हाट्सएप आये और बताये की "श्रीराम असल मे रावण से नेगोशिएट करके सीता को लंका में छोड़ देने को तैयार हो गए थे"। एक असलीनुमा पत्र भी साथ मे स्क्रीनशॉट लगा हो।
या यह की हनुमान जी ने लक्ष्मण पर चारित्रिक इल्जाम लगाया था, कोई फेक चौपाई दिखा दी जाए। असल मे श्रीराम पर तो कोई असर होगा नही, मगर हमारी पूरी आस्था, विश्वास, गर्व चौपट हो जाएगा। भीतर कुछ ऐसा ध्वस्त होगा, कि आप धार्मिक कार्यकलापों से उदासीन हो जाएंगे। जैसे ही आप उदासीन होंगे, फारवर्ड भेजने वाले का काम बन जायेगा।
अक्सर, गांधी नेहरू के दौर की घटनाओं, देश काल, और परिस्थितियों को उजागर करने वाली पोस्ट लिखता हूँ। कांग्रेस को डिफेंड करता हूँ, कांग्रेसी वामी के तमगे मिलते है। असल मे पिछले 25 साल में कभी कांग्रेस कभी भाजपा को वोट किया है। मगर आज जितनी दृढ़ता से गांधी नेहरू के पक्ष में खड़ा होता हूँ, वैसा कभी नही रहा।
इसलिए कि आज इसकी जरूरत है। हर देशभक्त और जागरूक नागरिक को उस 60 साल पहले की कांग्रेस के साथ खड़े होने की जरूरत है। एक पुरानी पोस्ट है। पढ़ें, समझे। औरों को समझायें।
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माइकल एंजलो संगमरमर की एक दुकान से अक्सर गुजरते थे। एक दिन उन्होंने दुकानदार से पूछा- तुमने दुकान के उस तरफ रास्ते के किनारे एक बड़ा संगमरमर का पत्थर डाल रखा है। कई बरस से देखता हूं। उसे बेचते क्यो नहीं?
दुकानदार ने कहा- वह बिकता नहीं। पत्थर बेकार है। मैंने तो आशा ही छोड़ दी। कोई चाहे तो मुफ्त में तो ले जाए। ढोने का खर्च भी मैं दे दूंगा। तुम पूछने आये हो, तुम्ही ले जाओ। झंझट मिटे और जगह खाली हो!
माइकलएंजलो पत्थर ले गया। कोई साल बीतने के बाद एक दिन माइकलएंजलो ने दुकानदार से आकर पूछा- मेरे घर चलोगे? कुछ दिखाने योग्य है! ले गया दुकानदार को। दुकानदार ने देखा जो, आंखों से आनंद के आंसू बहने लगे।
माइकलएंजलो ने उस पत्थर में जो प्रतिमा गढ़ी थी, वह है जीसस की प्रतिमा और मरियम की। जीसस को मरियम ने सूली से उतारा है। जीसस की लाश को मरियम अपने हाथों में लिए बैठी है! कहते हैं ऐसी अदभुत प्रतिमा दूसरी नहीं है।
कुछ सालों पहले एक पागल आदमी ने इसी प्रतिमा को रोम में हथौड़ा मारकर तोड़ दिया। जब उससे पूछा गया--यह तूने क्या किया? तूने जगत की श्रेष्ठतम कृति नष्ट कर दी!
उसने कहा- जैसे माइकलएंजलो का नाम प्रसिद्ध था, अब मेरा भी नाम प्रसिद्ध रहेगा। उसने बनाई, मैंने मिटाई। वह बना सकता था, मैं बना नहीं सकता, लेकिन मिटा तो सकता हूं!
किसी देश के निर्माण के लिए भूमि, सीमा, सेना, जनता, सरकार, संस्कृति की जरूरत होती है,मगर इसके साथ साथ हीरोज की भी। किसी देश के इतिहास, धर्म, राजनीति और ज्ञान के पुरोधा हीरो बनाकर पेश किये जाते है। ऐसे हीरो जो अगली पीढ़ियों को गौरवान्वित करते हो, राष्ट्र की महानता और उच्चता, उंसके आदर्श में आस्था जगाते हों। इन हीरो की छवि, उनका जीवन, अगली पीढ़ी के नए नागरिक के मन मे मूरत की तरह बस जाती है। वे हीरो देश के सिंबल हो जाते हैं।
यह सच है कि किवदन्ती करण की इस प्रक्रिया में कई अर्धसत्य और ऊल जलूल महिमामंडन भी जुड़े हुए मिल सकते हैं। असल स्टेट्समैन उन मूरतों को , वैसा ही छोड़कर वर्तमान और भविष्य पर ध्यान लगाते हैं।
अफसोस, की अपने सांगठनिक इतिहास तथा वर्तमान की प्रतिभाशुन्यता से कमतरी में दबे नेता हिंदुस्तान की नई पीढ़ी के दिल की इन मूरतों को तोड़ रहे है। झूठ का हथौड़ा बदस्तूर बरस रहा है।
जो लोग बना नहीं सकते, वे मिटाने में लग जाते हैं। सृजन कठिन है, विध्वंस आसान.. । विध्वंस की ये कोशिशें सफल हों, या असफल। इतिहास इन्हें याद रखेगा, उस पागल आदमी की तरह, जिसने माइकल एंजलो की मूर्ति पर हथौड़ा चलाया था।
और हां, तमाम कोशिश के बावजूद उसका नाम याद नही रखा गया। उसे "वो पागल आदमी" ही कहा जाता है।
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