मैं सदा भयभीत रहता हूं—खासकर लोगों की मेरे प्रति क्या #धारणा होगी, इससे। अब संन्यास भी लेना है, लेकिन भय के कारण रुका हूं। क्या करूं?
भय नहीं है मूल में, मूल में अहंकार है। दूसरों की धारणा क्या होगी मेरे प्रति इसका इतना ही अर्थ है कि दूसरे मुझे ऐसा #समझें, वैसा न समझें;
#बुद्धिमान समझें, #विक्षिप्त न समझ लें। लोगों की धारणा मेरे प्रति इस ढंग की ही होनी चाहिए तो ही मेरा अहंकार सधेगा। अगर लोगों की धारणा बदल गयी तो मेरे अहंकार का क्या होगा?
#अहंकार दूसरों पर निर्भर है। उनके हाथ में है तुम्हारी #कुंजी। अहंकार के प्राण तुम्हारे हाथ में नहीं है, दूसरों के हाथ में हैं;
जब चाहें तब दबा देंगे तो तो तुम मर जाओगे। इससे भय है। तुमने अपने प्राण दूसरों में रख दिये हैं। तुमने बच्चों की कहानियां पढी है? कोई सम्राट है, उसने अपने प्राण तोते में रख दिये हैं। सम्राट को नहीं मारा जा सकता लेकिन कोई तोते की गर्दन मरोड़ दे तो सम्राट मरेगा। ऐसे ही अहंकार ने अपने प्राण दूसरों के मंतव्यों में रख दिये हैं। भीड़ क्या कहेगी? इसीलिए भीड़ के अनुकूल चलो, ताकि भीड़ तुम्हारे अनुकूल रहे। जैसा भीड़ कहे, वैसे उठो, वैसे बैठो— भेड़—
चाल चलो। अपनी चाल मत चलना; भीड़ पसंद नहीं करती तुम्हारी चाल। क्योंकि तुम्हारी चाल का मतलब होता है, तुम बगावती हो,
विद्रोही हो; तुम अपने होने की घोषणा कर रहे हो। यह #भीड़ बर्दाश्त नहीं करती। भीड़ कायरों की है। कायर किसी हिम्मतवर को बर्दाश्त नहीं करते। क्योंकि उस हिम्मतवर के कारण उन्हें अपना कायर पन दिखायी पड़ता है। वे तुमसे बदला लेंगे। वे तुम्हें #पागल कहेंगे, विक्षिप्त कहेंगे, #सिरफिरा कहेंगे। सो ड़र लगता है।
क्योंकि तुम्हारी #प्रतिष्ठा उनके हाथ में है। गौर से समझना, यह भय नहीं है। भय गौण है, मूल में अहंकार है। और जब तक किसी प्रश्न को ठीक—ठीक न पकड़ लिया जाए तब तक उसका हल नहीं होता। तुम भय समझते रहे तो तुम इसका हल कभी न कर पाओगे।
#अथातो भक्ति जिज्ञासा #ओशो