गांव में जान अब भी है
बुजुर्गों का सम्मान अब भी है
बेशक कमरों में ए सी नही
छोटा सा रोशनदान अब भी है
बेशक कान्वेंट सी पढाई नही
सरकारी स्कूलों में मुस्कान अब भी है
बेशक शापिंग माल नही
लाला की दुकान अब भी है
बेशक बहुमंजिली इमारतें नही
बरगद की शान अब भी है
बेशक कमजोर हुए हैं
रिश्तों में प्राण अब भी है
बेशक फोन सा स्मार्ट नही
मगर नेटवर्क में जान अब भी है
बेशक जरनेटरों का शोर नही
कव्वों की कांव कांव अब भी है
कौन करता तुम्हारे शहर के चर्चे
शुक्र करो की गांव अब भी है