संजीव जैन's Album: Wall Photos

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प्रिय इनबुक दोस्तों,
17/06/2018 आज हम लोग father's day
(पितृ दिवस) मना रहे हैं।
आज सोशल मीडिया पर सभी के पापा की तस्वीरें दिखाई दे रही हैं। अच्छी बात है लेकिन यहाँ उनकी तस्वीरें दिखाने से बेहतर होता कि घर में बैठकर आज पूरा दिन माता-पिता के साथ बिताया जाए। उनकी गोद में लेट कर, बच्चा बनकर कुछ हँसकर, कुछ रूठकर, थोड़ी देर के लिए उन्हें उनका बुढ़ापा भुला दिया जाए। इसी बहाने आप भी कुछ पल अपने बचपन के जी लोगे।

यह तो एक पहलू हुआ। दूसरा पहलू यह है कि कितने ही लोग आज सोशल मीडिया पर ऐसे भी हैं जिनके पिता, माता अथवा दोनों ही आज उनके बीच नहीं हैं। पूरा दिन ऐसी पोस्ट देख कर शायद उनकी भावनाएँ आहत होती हों? लेकिन हमें इस बारे में सोचने की आवश्यकता ही क्या है? हमें तो बस अपने को श्रवण कुमार जो साबित करना है? मैं ये बातें इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मुझे किसी से कोई वैमनस्य है, बल्कि इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि पितृ भक्ति का यह उत्सव देखकर मेरा मन आज बहुत उदास हो गया है। मेरे पिताजी तो आज हमारे बीच नहीं हैं, कहाँ से लाऊँ उन्हें? जाने अनजाने अपने जन्म से लेकर उनकी अंतिम साँस तक मैंने न जाने कितनी बार उनका दिल दुखाया होगा? कितनी बार उनकी हितकारी आज्ञाओं का उल्लंघन किया होगा? मुझे याद है मेरी गलतियों के लिए थोड़ी सजा भी मिली। उस समय मुझे बहुत बुरा लगता था परन्तु कालान्तर में उस सजा में भी माता-पिता के हृदय की करुणा समझ आई। मैंने पढ़ाई को कभी गम्भीरता से नहीं लिया। उनका सपना पूरा नहीं कर पाया जो उन्होंने मेरे लिए देखा हो।इसी प्रकार और भी न जाने कितनी बार वे मन ही मन दुखी हुए होंगे।

आप सबकी पोस्टें मुझे मेरी जानी अनजानी भूलों की याद दिलाती हैं। दूसरे, आज पिताजी मेरे साथ नहीं कि मैं उनसे क्षमा याचना कर सकूँ।

मैं जानता हूँ कि मेरी ही तरह आप सभी ने भी कहीं न कहीं अपने माता-पिता का दिल अवश्य दुखाया होगा। हम सब पंचमकाल की सन्तानें हैं, पूरी तरह आज्ञाकारी एवं पवित्र तो हो ही नहीं सकतीं। है ना? ठीक कह रहा हूँ ना मैं? ना ना ना, मैं सबके सामने आपको आपकी गलतियाँ स्वीकार करने के लिए नहीं कह रहा हूँ, बस इतनी विनती आप सबसे अवश्य है कि अभी सोशल मीडिया पर पितृ भक्ति का यह प्रदर्शन बन्द करके, जाइए और अपनी जीवन भर की जानी अनजानी भूलों के लिए उनसे क्षमा माँगिए। यह भी न कर सको तो उनके साथ आज का समय बिताइए। भाग्य से आज रविवार है, सबका छुट्टी का दिन भी है। यकीन मानिए, आपका साथ पाकर ही माता-पिता का हृदय प्रफुल्लित हो उठेगा। हमारी एक भी गलती के लिए उनके हृदय में स्थान नहीं बचेगा। इस प्रकार आप सबका क्षमा पर्व भी सम्पन्न हो जाएगा।

याद कीजिए जरा अपने बच्चों की उन तीखी कड़वी बातों को, जिनसे तुम्हारा हमारा दिल न जाने कितनी ही बार पीड़ित हुआ होगा? उसी प्रकार हमारी भी कितनी ही जानी अनजानी बातों से हमारे माता-पिता का दिल भी रोया होगा। याद करो अपने बच्चों की उन नन्ही मुन्नी तुतली हकलाती मस्तियों को, जिनसे तुम्हारा हमारा हृदय आन्दोलित हुआ होगा? उसी प्रकार हमारी आपकी भी कितनी ही नटखट शरारतों से हमारे माता-पिता का बूढ़ा हृदय आन्दोलित हुआ होगा। जाइए और आज फिर से उन्हें उसी आनन्द में स्नान कराइए।

मैं भी अपने पिताजी को भावों में बिठाकर, उनके साथ में बातचीत करता हूँ। शायद मेरे पापों का बोझ कुछ कम हो सके।

ये मातृ पितृ दिवस तो सब विदेशियों की देन है, जिनकी संस्कृति में परिवार