जब भी देश में ‘महान कौन? अकबर या राणा प्रताप?’ विषय पर बहस छिड़ जाती है तो मुझे भी स्कूल की इतिहास वाली पुस्तकों में पढ़े वामपंथी इतिहासकारों के स्वर्णिम अक्षर याद आ जाते है। एक और जहाँ अकबर, टीपू सुल्तान और औरंगजेब आदि महान दिखाई पड़ते थे वहीं इस महानता को पाने के लिए राम, कृष्ण, विक्रमादित्य, पृथ्वीराज, राणा प्रताप, शिवाजी और ऐसे कितने ही महापुरुषों के नाम तरसते रहते। पुस्तकों में अकबर के बारे में छपे पूरे अध्याय में दो-तीन लाइन महाराणा प्रताप पर भी होती थी। वो कब पैदा हुए, कब मरे, कैसे विद्रोह किया और कैसे उनके ही राजपूत उनके खिलाफ थे आदि?
अब अकबर और महाराणा प्रताप का मुकाबला कहा? कहाँ अकबर पूरे भारत का सम्राट, अपने हरम में पांच हज़ार से भी ज्यादा औरतों की जिन्दगी रोशन करने वाला, बीसियों राजपूत राजाओं को अपने दरबार में रखने वाला और कहा राणा प्रताप जो सब कुछ त्याग कर अपने राज्य के लिये लड़ता रहा, जिसका कोई हरम नहीं और अपने राज्य की रक्षा के लिये वनों में रहकर घास की रोटी खाता रहा। वो राणा प्रताप जो अकबर “महान” का संधि प्रस्ताव कई बार ठुकरा चुका था। सच है कि हमारे इतिहासकार किसी को महान यूँ ही नहीं कह देते।
ऐसे इतिहासकार जिनका अकबर दुलारा और चहेता है, एक बात नहीं बताते कि कैसे एक ही समय पर राणा प्रताप और अकबर महान हो सकते थे जबकि दोनों एक दूसरे के घोर विरोधी थे?
जब मेवाङ की सत्ता राणा प्रताप ने संभाली, तब आधा मेवाङ मुगलों के अधीन था और शेष मेवाङ पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिये अकबर प्रयासरत था। राजस्थान के कई परिवार अकबर की शक्ति के आगे घुटने टेक चुके थे, किन्तु महाराणा प्रताप अपने वंश को कायम रखने के लिये संघर्ष करते रहे। जंगल-जंगल भटकते हुए घास-पात की रोटियों में गुजर-बसर कर पत्नी व बच्चे को विकराल परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया। पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए दानवीर भामाशाह ने अपना पूरा खजाना समर्पित कर दिया। तो भी, महाराणा प्रताप ने कहा कि सैन्य आवश्यकताओं के अलावा मुझे आपके खजाने की एक पाई भी नहीं चाहिए। महाराणा प्रताप के पास साधन सीमित थे, किन्तु फिर भी वो झुका नही, डरा नही। उनके धैर्य और साहस का ही असर था कि 30 वर्ष के लगातार प्रयास के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बन्दी न बना सका।
महाराणा प्रताप सच्चे क्षत्रिय योद्धा थे, उन्होने अमरसिंह द्वारा पकङी गई बेगमों को सम्मान पूर्वक वापस भिजवाकर अपने विशाल ह्रदय का परिचय दिया। उनके शासनकाल में अनेक विद्वानो एवं साहित्यकारों को आश्रय प्राप्त था। अपने शासनकाल में उन्होने युद्ध में उजङे गाँवों को पुनः व्यवस्थित किया। पद्मिनी चरित्र की रचना तथा दुरसा आढा की कविताएं महाराणा प्रताप के युग को आज भी अमर बनाये हुए हैं।
अब एक नज़र डालते है अकबर महान से जुड़ी कुछ बातों पर और वो भी तथ्यों के साथ। अकबर के जीवन पर सबसे ज्यादा प्रामाणिक इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ की अंग्रेजी की किताब “अकबर- द ग्रेट मुग़ल” यहाँ से शुरू है - “अकबर भारत में एक विदेशी था। उसकी नसों में एक बूँद खून भी भारतीय नहीं थी…. अकबर मुग़ल से ज्यादा एक तुर्क था” पर देखिये! हमारे इतिहासकारों ने अकबर को एक भारतीय के रूप में पेश किया है। जबकि हकीकत यह है कि अकबर के सभी पूर्वज बाबर, हुमायूं, से लेकर तैमूर तक सब भारत में लूट, बलात्कार, धर्म परिवर्तन, मंदिर विध्वंस, आदि कामों में लगे रहे।
बाबर शराब का शौक़ीन था और हुमायूं अफीम का। अकबर ने ये दोनों आदतें अपने पिता और दादा से विरासत में लीं। अकबर का दरबारी लिखता है कि अकबर ने इतनी ज्यादा पीनी शुरू कर दी थी कि वह मेहमानों से बात करता करता भी नींद में गिर पड़ता था।
ये भी इतिहास है कि अकबर आगरा में मीना बाज़ार लगवाता था और उस मीना बाज़ार में खुद औरतो के कपड़े पहन के जाता था और जो औरत पसंद आती थी उसको ले आता था। बीकानेर की महारानी किरण देवी उस मीना बजार में आई थी और अकबर किरण देवी पर मोहित हो गया। वहां किसी भी तरह उसे हासिल करना चाहता था। तब उसकी बानियाँ किरण देवी को बहला फुसलाकर अकबर के दरबार में ले गई। जब अकबर के सामने पहुंची महारानी ने अकबर की बुरी नियत को देखा तो उसे गिराकर उसकी छाती पर छुरी लेकर चढ़ गई, तब अकबर ने बहन बनाकर उससे माफ़ी मांगी थी।
ये भी इतिहास है कि अकबर ने तुलसीदास को क़ैद किया। जहाँगीर ने लिखा है कि अकबर कुछ भी लिखना पढ़ना नहीं जानता था पर यह दिखाता था कि वह बड़ा भारी विद्वान है।
रणथंभोर की संधि में अकबर महान की पहली शर्त यह थी कि राजपूत अपनी स्त्रियों की डोलियों को अकबर के शाही हरम के लिए रवाना कर दें यदि वे अपने सिपाही वापस चाहते हैं।
बैरम खान जो अकबर के पिता तुल्य और संरक्षक था, उसकी हत्या करके इसने उसकी पत्नी अर्थात अपनी माता के तुल्य स्त्री से शादी की। कर्नल टोड लिखते हैं कि अकबर ने एकलिंग की मूर्ति तोड़ी और उस स्थान पर नमाज पढ़ी। चित्तौड़ में तीस हजार लोगों का कत्लेआम करने वाला और नगरों और गाँवों में जाकर नरसंहार कराकर लोगों के कटे सिरों से मीनार बनाने वाले क्रूर आक्रांता को आज “शान ए हिन्दोस्तां” लिखा जा रहा है।
यह विडंबना ही है कि विश्व को ज्ञान देने वाले भारत को ही दुनिया का सबसे झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है।