संजीव जैन's Album: Wall Photos

Photo 14,569 of 15,034 in Wall Photos

रामकृष्ण परमहंस के समकालीन और उनके निकट मित्र रहे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने आनंदमठ की रचना की जिसमें बाद में वंदे मातरम् को भी शामिल किया गया जो देखते-देखते पूरे देश में राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया.
गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने इसके लिए धुन तैयार की और वंदे मातरम् की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ने लगी
जब आज़ाद भारत का नया संविधान लिखा जा रहा था तब वंदे मातरम् को न राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया और न ही उसे राष्ट्रगीत का दर्जा मिला.
लेकिन संविधान सभा के अध्यक्ष और भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 24 जनवरी 1950 को घोषणा की कि वंदे मातरम् को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया जा रहा है.
वंदे मातरम् का इतिहास बड़ा ही दिलचस्प है. बंकिम चंद्र ने वंदे मातरम् की रचना 1870 के दशक में की थी.
उन्होंने भारत को दुर्गा का स्वरूप मानते हुए देशवासियों को उस माँ की संतान बताया. भारत को वो माँ बताया जो अंधकार और पीड़ा से घिरी है. उसके बच्चों से बंकिम आग्रह करते हैं कि वे अपनी माँ की वंदना करें और उसे शोषण से बचाएँ.
भारत को दुर्गा माँ का प्रतीक मानने के कारण आने वाले वर्षों में वंदे मातरम् को मुस्लिम लीग और मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग शक की नज़रों से देखने लगा.
इसी विवाद के कारण भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू वंदे मातरम् को आज़ाद भारत के राष्ट्रगान के रूप में नहीं स्वीकार करना चाहते थे.
मुस्लिम लीग और मुसलमानों ने वंदे मातरम् का इस वजह से विरोध किया था कि वो देश को भगवान का रूप देकर उसकी पूजा करने के ख़िलाफ़ थे.
नेहरू ने स्वयं रवींद्रनाथ ठाकुर से वंदे मातरम् को स्वतंत्रता आंदोलन का मंत्र बनाए जाने के लिए उनकी राय माँगी थी.
रवींद्रनाथ ठाकुर बंकिम चंद्र की कविताओं और राष्ट्रभक्ति के प्रशंसक रहे थे और उन्होंने नेहरू से कहा कि वंदे मातरम् के पहले दो छंदों को ही सार्वजनिक रूप से गाया जाए.
हालांकि बंकिमचंद्र की राष्ट्रभक्ति पर किसी को शक नहीं था.।
(Source-BBC HINDI)