ऐन चुनाव के पहले सस्ती बिजली सरल बिल योजना ,किसानों को पिछला बोनस ,विद्यार्थियों को पुरस्कार राशि ,लेपटॉप वितरण योजना जैसी बहुत सी योजनाओं की सौगात क्या जनटैक्स की खैरात बाँटने जैसा नही है ? क्या यह सब चुनाव पूर्व रिश्वत और नजराना नही है ?देश के मेहनतकश टैक्स पेयरों के द्वारा जमा किया गया टैक्स क्या मनलुभावन योजनाओं के संचालन के लिए है ?क्या कर दाताओं द्वारा दिया गया कर खैरात में बाँटने का सरकार को नैतिक हक बनता है ?करदाता देश प्रदेश गाँव शहर के विकास के लिए ,संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए ,सबके लिए समान सुविधाओं के लिए टैक्स देता है और अब सरकारें बहुत से वर्षो से इन टैक्स का बेजा मनमानी इस्तेमाल किया जा रहा है जो बहुत ही चिन्ताजनक है ।यह जनटैक्स की खुली बर्वादी है जिसे तत्काल रोका जाना चाहिए।आलसी ,अकर्मण्य लोगों को फोकट में पालने का ठेका कर दाता नही लेते है ।यदि नेताओं को ऐसा ही करना है तो अपनी सैलरी और सुविधाओं में कटौती करके देना चाहिए।मेरा मानना है कि जन टैक्स से कबड्डी नही होना चाहिए क्योंकि यह भी पसीनें और खून की गाढ़ी कमाई है ।जय हिन्द