तस्वीर कर्नाटक के कलबुर्गी शहर के एक सरकारी स्कूल में काम करने वाले क्लर्क श्री बसावराज की है।
एक साक्षात्कार में बसावराज ने बताया के उन्हें अपनी बिटिया जान से भी प्यारी थी । परंतु नियति के आगे किसी का बस नहीं चलता। एक शाम बिटिया की तबियत बिगड़ी तो बसावराज उन्हें स्थानीय हॉस्पिटल ले गये। मालूम पड़ा के इंफेक्शन बहुत बढ़ चुका है और जान को खतरा है।
डॉक्टर्स जब तक स्थिति को संभाल पाते बिटिया की सांसें उखड़ने लगी। कुछ ही क्षण बाद बसावराज को सूचना दी गयी के उनकी जान से प्यारी बिटिया अब इस दुनिया मे नहीं है।
बसावराज भीतर तक टूट चुके थे। अपनी बच्ची पर एक खरोंच तक बर्दाश्त ना कर पाने वाले पिता के समक्ष अब बिटिया मृत पड़ी थी। दुख और वेदना पराकाष्ठा पार कर चुकी थी।
परन्तु जीवन रुकता नहीं हैं। कुदरत का दस्तूर है । सांसें थम जाती हैं जीवन नहीं थमता। बसावराज ने पुनः हिम्मत जुटाई और दोबारा ड्यूटी पर आना शुरू किया। बसावराज बताते हैं के स्कूल में पढ़ती बच्चियों को देख कर उन्हें बरबस अपनी बिटिया की याद आती रहती थी।
बसावराज अपनी बिटिया की याद में कुछ करना चाहते थे। यह बात उन्होंने जब अपनी पत्नी से कही तो दोनों ने एक ऐसा फैसला लिया जिसे पूरे शहर में सराहा जा रहा है।
बसावराज ने प्रण लिया के जिन 45 बच्चियों की सूची बनी है उनकी स्कूल फीस और पढ़ाई लिखाई से जुड़ा हर खर्च वह स्वयं उठायेगा। अगर यह बच्चियां पढ़ लिख गयी तो उनकी सफलता ही उसकी मृत बेटी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
उल्लेखनीय है के इस वर्ष बसावराज अपनी जेब से 45 बच्चियों की स्कूल फीस भर चुके हैं। बसावराज कहते हैं के बच्चियां जब तक पढ़ना चाहेंगी वह अपने दम पर उनकी शिक्षा का प्रबंध करेंगे।
इसके लिये बसावराज ने बेटियों के आगे एक ही शर्त रखी है। हर एक बिटिया अब बसावराज को "बाबा" यानि पिता कह कर संबोधित करती है।
नम आंखों से बसावराज कहते हैं के अब उन्हें इन सभी बच्चियों में अपनी दिवंगत बिटिया की परछाई दिखाई देती है। विपरीत परिस्थितियों में अक्सर मज़बूत से मज़बूत इंसान को भावनात्मक रूप से टूटते और बिखरते देखा है। फिर भी बसावराज जैसे चंद लोग अपने दुःख और वेदना के आगे घुटने टेकने से इनकार करते हुऐ कुछ ऐसा कर देते हैं के उनका दुख ना जाने कितने लोगों के सुख में परिवर्तित हो जाता है।।