आडवाणी जी,
कल से सब हम अटल जी की चर्चा में मशगूल थे,शोकमग्न थे।
हर कोई किसी न किसी किस्से,कविता या भाषण के किसी अंश को याद कर रहा था लेकिन इन सबसे परे एक व्यक्ति जिस पर किसी का ध्यान नही था।
ये चश्मे के अंदर से आंख से आंसू बह रहा है ना वो भी 90+ की उम्र में जब आँशु भी सूख जाते है ,ये आँशु बहुत कीमती तो है ही साथ ही ये दिखाता है कि वेदना की क्या चरम सीमा रही होगी।
हम सबमें से किसी ने अपना नेता खोया है,किसी ने अभिभावक लेकिन एक आडवाणी जी ही ऐसे है जिन्होंने अपना भाई खोया है,सबसे प्रिय मित्र खोया है।
जब भाजपा 2 सीट पर थी तब ये दोनों ही थे जिन्हें ये तंज मिला होगा ।
जब 1 वोट से सरकार गिरा दी गई तब भी ये दोनों ही जिन्होंने मंथन किया होगा।
जब देश मे हिंदुत्व को अछूत मान लिया गया था तब ये दोनों ही थे जिन्होंने बिना सत्ता की परवाह किये हिंदुत्व से स्वयं को जोड़े रखा।
आज हमारे दिलों में जो हिंदुत्व का तूफान उमड़ रहा है ना इसमे इन दोनों का योगदान अमूल्य है।
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