संजीव जैन's Album: Wall Photos

Photo 260 of 15,078 in Wall Photos

★★★ शिक्षक दिवस ★★★
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

अभी शिक्षक-दिवस हुआ। वहां किसी ने मुझे भूल से बोलने बुला लिया। वहां मैं गया, तो उन्होंने कहा कि यह शिक्षक का बहुत सम्मान है कि एक शिक्षक राष्ट्रपति हो गया। मैंने कहा, यह बिलकुल गलत बात है। शिक्षक का सम्मान शिक्षक के अच्छे होने में है। शिक्षक का सम्मान राष्ट्रपति हो जाने में नहीं है। लेकिन सब शिक्षक राष्ट्रपति होने की दौड़ में पड़ जाएंगे, तो बड़ी कठिनाई हो जाएगी। वह दौड़ चल रही है। नहीं राष्ट्रपति हो सकेंगे तो किसी स्टेट के एजुकेशन मिनिस्टर हो जाएंगे, नहीं तो वाइस चांसलर हो जाएंगे! यह बात गलत है। शिक्षक का सम्मान अच्छा शिक्षक होने में है। और अगर एक अच्छा शिक्षक राष्ट्रपति होने में जाता है तो यह शिक्षक का असम्मान है, सम्मान नहीं है।

यह तो समझ में आ सकता है कि एक राष्ट्रपति राष्ट्रपति का पद छोड़ दे और शिक्षक हो जाए। यह समझ में बिलकुल नहीं आता कि शिक्षक, शिक्षक का पद छोड़ दे और राष्ट्रपति हो जाए। यह समझ में आने वाली बात नहीं है। क्योंकि शिक्षक और राजनीतिज्ञ में क्या मुकाबला? एक शिक्षक का पतन है यह कि वह राजनीतिज्ञ हो जाए। एक राजनीतिज्ञ का विकास होगा यह कि वह शिक्षक हो जाए। शिक्षक एक सरलतम व्यवसाय है, सरलतम वृत्ति है। जीवन की बहुत आधारभूत बात है। शिक्षक कोई व्यवसाय नहीं है, बल्कि एक आनंद है, एक सेवा है, एक सृजन है, एक साधना है। उसे छोड़ कर जब भी कोई कहीं भागता है तो सम्मानित नहीं होगा, न सम्मानित होना चाहिए। लेकिन हमारे मन में तो हर तरफ राजनीति और पद महत्वपूर्ण हैं। हम तो बहुत अजीब लोग हैं।

हमारे मन में मनुष्य का कोई आदर नहीं है। हमारे मन में राष्ट्रपति का आदर है, प्रधानमंत्री का आदर है, गवर्नर का आदर है। खाली मनुष्य, जिसके पास कोई पद, कोई नाम, कोई पदवी, कोई सर्टिफिकेट, कुछ भी नहीं, निपट मनुष्य का हमारे मन में कोई आदर है? और अगर निपट मनुष्य का हमारे मन में कोई भी आदर नहीं है तो स्मरण रखें, हमारे मन में किसी का कोई आदर नहीं है। यह सब ऊंची-नीची कुर्सियों का आदर है।

लेकिन यही शिक्षा हमें सिखाती है! यह सारी शिक्षा जला देने योग्य है। फिर से पूरे के पूरे नए आधार रखने की जरूरत है। और वे आधार होंगे कि हमें प्रेम सिखाया जाए, प्रतियोगिता नहीं। मनुष्य के प्रति, निपट मनुष्य के प्रति सम्मान सिखाया जाए -पदों, ओहदों के प्रति आदर नहीं। जरूरी है कि कामों के साथ प्रतिष्ठा न जोड़ी जाए। समग्र जीवन सभी लोगों का सामूहिक योगदान है, यह भाव पैदा किया जाए। प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में अनूठा है। कोई कहने की जरूरत नहीं है कि तुम फलां आदमी से कमजोर हो या फलां आदमी से बुद्धिमान हो या फलां आदमी से कम सुंदर हो। ये सब तुलनाएं खतरनाक हैं, वायलेंट हैं। इनकी वजह से गड़बड़ पैदा होती है। प्रत्येक व्यक्ति जैसा वह है, हमें स्वीकृत है। उसमें जो संभावनाएं हैं, वे विकसित हों....

ओशो
शिक्षा में क्रांति पुस्तक से....