हम राह चलते किसी गाय को उसके बाछे को दूध पिलाते देखते हैं तो प्रफुल्लित होते हैं, किसी पक्षी को चोंच में दबाए अपने बच्चों के लिए दाना लाते देखते हैं तो मन मोह से भर जाता है, कितनी ही सारी तस्वीरों में कितने ही सारे जानवरों और पक्षियों को अपने बच्चों को स्तनपान कराते देखते हैं तो हमारा मन ख़राब नहीं होता फिर इंसान की एक जाति के लिए, हम स्त्रियों के लिए आपके मिज़ाज़ इतने तल्ख़ क्यों हो जाते हैं? क्यों आपको एक दूध पिलाती स्त्री में माँ की ममता और बच्चे की भूख की जगह अश्लीलता दिखती है? क्या आप अपना खाना मुँह को कपड़े से ढँककर खा सकते हैं? स्तनपान के समय किसी भी स्त्री का उद्देश्य अपने स्तनों का प्रदर्शन नहीं होता, वह ख़ुद पहले से ही लाज शर्म में होती है, और कोशिश यही करती है कि ढँक-छुपकर या एकांत देखकर ही अपने बच्चे को दूध पिलाए लेकिन यदि बच्चे को भूख बर्दाश्त नहीं और एकांत भी उपलब्ध नहीं तब क्या टॉयलेट आदि में जाकर बच्चे को दूध पिलाना सही है? तब क्या आपकी मानवता आपको दुत्कारती नहीं? या फिर आपके पास यह संदेश है कि जीन्स टॉप पहनने वाली माँओं को साथ में एक ओढ़नी लेकर घूमना चाहिए? क्या आपकी नज़रों में इतनी हवस है? मैंने अपने कई पुरुष मित्रों को स्तनपान के समय सहज और स्त्रियों को असहज देखा है, वे चाहती हैं, कहती हैं कि ढँक लो, छी छी कैसी औरत है पब्लिक में फीड करा रही है, आँखों से रूखापन दिखाना और क्रूर व्यवहार यह क्यों? एक बार इस बारे में विचार करिएगा और हो सके तो हमें इतना सहज माहौल दीजिएगा कि अपने बच्चे को पब्लिक में दूध पिलाने में हमें शर्मिंदगी ना हो, अपराधी न माने हम ख़ुद को। दो माह पहले पुणे के एक रेस्टोरेंट में मुझे गर्मी में पसीना बहाते हुए टॉयलेट पॉट पर बैठकर अपने बेटे को दूध पिलाना पड़ा था क्योंकि वहां कोई एकांत नहीं था और पुरुष बाहुल्य माहौल में पब्लिक में दूध पिलाना अलाउड नहीं था। ~ अंकिता जैन
PS : मेरी यह तस्वीर धनोल्टी की है, जब हम इको पार्क में थे और मेरा बेटा दूध पीने के लिए रोने लगा था। वहां एकांत खोजना मुश्किल था, और साथ ओढ़नी लेकर नहीं घूमती। उम्मीद है इस तस्वीर में आपको अश्लीलता नहीं दिखेगी।