उम्मीद की सूई अब भी
रिश्ते के रील में अटकी पड़ी है।
दम्भ के दीमक जिन सूतों को चाट गये हैं
पहल की एक उम्मीद अब भी
चटकते धागों के बीच अटकी पड़ी है।
वो हँसना- हँसाना, रुलाना- मनाना
मोटे से तोसक के भीतर दबा है
बहुत धूल जम गयी सतह पर
शुकर है सोशल मीडिया से
उखड़ती हुई इसकी साँसे बची है।
कसीदे शुभचिंतकों के कब के उधड़ गये
जिन्दगी की तुरपाई के धागे बिखर गये
जबसे सलीके सिलाई के हमसे बिसर गये
वो छतरी समाते थे जिसमे घर-आंगन
उस छतड़ी के सारे सिलाई बिखर गये।
जीवन को दर्जी का हुनर फिर सिखाये
मुहब्बत के धागे सूई में पिरोये
संदेशे व्हाट्स एप के काफी नहीं हैं
एडिटेट फोटो पर लाईक जरूरी नहीं है
डिब्बे में पतली सी धागा पिरो कर
जरूरी है रिश्ते की भाषा फिर सुनाये।
रफू का हुनर सीखना है जरूरी
दिलो से मिले दिल यह सलीका है जरूरी
अगर छेद रिश्ते की चादर में आये
सूई-धागा उठा कर क्यों न करे हम सिलाई
खूबसूरत कढ़ाई से सजी एक चादर में
लिपटने की चाहत दिल में छिपी है।
उम्मीद की सूई अब भी
रिश्ते के रील में अटकी पड़ी है।