नफरत और संशय का चोला
जाने कब अपना परिधान बन गया,
कट्टरता और मूढ़ता की ज्वाला
जाने कैसे अपना अभिमान बन गया,
आईने में अपना अक्स देखते हैं मगर
अपने सीरत से कैसे अनजान ये दिल हो गया।
कभी सेनानियों का नाम सुन
दिल गर्व से भर जाता था,
गाँधी, तिलक, नेहरू, सुभाष
इनकी बलिदानी गाथा सुन
मस्तक सम्मान से उठ जाता था,
क्योंकि तब हमारे हाथ में
बलिदान तौलने की तराजू नहीं थी,
निश्छलता से भरा मन था
इतिहास के दस्तखत बदलने की
दिल में कोई आरजू नहीं थी।
लेकिन आज हमारा मन
इतिहास को ललकाड़ता है,
दर्ज़ हर स्वर्णाक्षर से
अंगार बन उलझता है,
हर बलिदान, हर एक संघर्ष पर
अब
सवालों के तोप तानने में मजा आता है,
खुद तो निठ्ठले बने देश के हालात से
कन्नी काट आँखें मूँदे कर बैठे हैं,
आपने चमचमाते घर के कूड़े से
गली के चौराहे को पाटे बैठे हैं,
लेकिन दिल ये जानता है कि
दौलत, शान-ओ-शौकत से बड़ी
एक और उम्दा सी चीज़ होती है,
लोग जिसे देशभक्ति कहते हैं
वो तमगा विरलों को ही नसीब होती है।
और इसलिये जो बलिदानी
तमाम वैचारिक भिन्नता के बाद भी
एक-दूरसे के उद्येश्य को सम्मान देते रहे,
उसी सम्मान को ताड़-ताड़ करके
मन वो तमगा हथियाना चाहता है,
गाँधी को सुभाष से नेहरू को पटेल से
जबरन भिड़वा कर
खुद को
उन सबसे बड़ा देशभक्त बताना चाहता है।
जिन्होंने देश केलिये
अपना सर्वस्व त्यागा,
क्रांति और आन्दोलन के
हवनकुण्ड में आहुति स्वरूप
अपना सम्पूर्ण जीवन डाला,
यातना की चरम रेखा
जिनके चरण छू नत हुयी,
सैकड़ों वर्षों की हुकूमत
जिनके मनोबल से पस्त हुयी,
जिनके निःस्वार्थ देशप्रेम से
हमको आजाद यह वतन मिला,
बेखौफ अपनी मन की कहने
और करने का जतन मिला,
आज उनके शहादत के सम्मान में
हमारे पास प्रश्नावली की फेहरिस्त है,
उनकी समाधित पर अर्पण हेतु
शब्दों के कुछ पत्थर हैं,
उनकी श्रद्धा में झुकाने हेतु
दम्भ में अकड़ा हुआ मस्तक है,
क्योंकि हम गाँधि नहीं, नेहरू नहीं
न हि पटेल, भगत सिंह या लाजपत राय हैं,
हम एक अहंकारी व्यक्ति भर हैं
जिसे देश से नहीं
केवल अपने अहंकार से प्रेम है.......