संजीव जैन's Album: Wall Photos

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जब तक समाज न बदलेगा इस देश में दुर्गा मत आना
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हे दुर्गे!हे आदिशक्ति!, अब मत आना इस देश में
सम्मान तनिक न पाओगी, तुम नारी के वेश में ।

फूल, दीप, माला, पूजा, ये सब महज दिखावा है
शक्ति श्रोत देवी हो तुम, इसलिये भक्ति का दावा है।

भक्त नहीं मिल पायेंगे माँ, जब शक्ति त्याग कर आओगी
जो शीश झुके हैं श्रद्घा में, वो दंभ से तना पाओगी ।

पूजा, आदर, सत्कार सभी, बस शक्ति के चाह में है
इसी शक्ति के मद से नित,छवि तेरी कुचली जाती है।

देवी तेरे भू पर तेरा ही, कोई रूप सुरक्षित रहा नहीं
नौनिहाल हो या अधेड़,कामुक नज़रो से अछूता रहा नहीं ।

फरमानों की दीवारें हैं, चाबुक दोषों की तनी हुयी
घर की दुर्गा अपने ही घर में, अवसादो से घिरी हुयी।

सिंह सवारी छोड़ के जब, तुम निकलोगी चौराहा पर
दूषित नज़रो के कीचड़ से, दामन तेरा सन जायेगा ।

तेरे कदमों के तले दबा, महिषासुर घोर अचम्भित है
मानव कैसे अपने भीतर, सौ महिष छुपाये बैठा है।

कंजक के आसन पर देवी, बालिका रूप में मत आना
जब तक समाज न बदलेगा, इस देश में दुर्गा मत आना ।