कल बीते पुरूष दिवस ने पुरूषो को बेचारा कर दिया ! औकात समझ मे आ गयी सभी को ! दिन भर लू चलती रही !कही कोई कोयल नही कूकी , किसी ने भी बधाई वाली फोटू पोस्ट नही की ,सन्न्नाटा छाया रहा सोशल मीडिया पर ,ऐसा सन्नाटा तो ग्वालियर मे कर्फ्यू लगने पर भी नही होता !
अब पुरूष शरमा शरमी मे एक दूसरे को बधाई देने से तो रहे ! सच्ची बात तो यह है कि इसकी उम्मीद महिलाओ से ही थी ,पर उनका मौन व्रत भी नही टूटा ! बधाई की उम्मीद लगाते पुरूषो को इतना अकिंचन पहले कब देखा गया याद करना कठिन है !
बहुतो को पता ही नही था कि पुरूषो को भी ऐसे किसी दिन की दरकार है ! उनके लिये भी साल मे एक दिन मुकर्रर हो चुका ! कम से हिंदुस्तानियो को तो हरगिज नही पता था ये ! पर ऐसा दिन है और ये अपने आप मे बडी बात है !
अब बिना वजह तो कुछ नही होता दुनिया मे ! पुरूषो के लिये एक दिन तय करने के पीछे भी ठोस वजहे है ! जो अब आपकी जानकारी के लिये बताना जरूरी हो गया है !
महिलाएं दिन में सात हजार शब्द बोलती हैं, तो पुरुष औसतन दो हजार शब्द ही बोल पाते है ! ये दो हजार शब्द बोलने का मौका भी उसे तब ही हासिल होता है जब वो अपने दोस्तो के साथ हो !
इतना कम बोलने का मौका हासिल होने के बावजूद पुरूषो को दिन भर मे औसतन छह झूठ बोलने पडते है जबकि महिलाओ का काम केवल तीन झूठो से ही चल जाता है ! पुरूष के झूठो का सबसे बडा हिस्सा बीबी के ,मै कैसी लग रही हूँ में खर्च हो जाता है ! वो घर की सुख शांति के मद्देनजर झूठ बोलता है ऐसे मे उसे साल के एक दिन का हकदार मान लिये जाना बुरी बात नही है !
एक शोध के मुताबिक पुरूषो के जीवन के तीन महिने तो रास्ता पूछने मे ही बीत जाते है और उस बेचारे के जीवन के छह महिने शेविंग करने मे बीतते है ! यह जानी मानी बात है कि रास्ता पूछने या शेविंग करने जैसे काम पुरूष केवल इसलिये करते है क्योकि दुनिया मे महिलाये मौजूद है !
पच्चासी फीसदी पुरूष भुलक्कड होते है और इतने भुलक्कड होते है कि दिन मे तकरीबन तीन चीजे भूल जाते है और कम से कम पाँच अलग अलग महिलाओ के बारे मे एक जैसी राय बना लेते है ! ऐसे मे वे सहानुभूति और अपने नाम साल का एक दिन मुकर्रर करने के हकदार तो हो ही जाते है !
खैर जो बीत गई तो बीत गई ! मै अपनी सभी सम्मानीय महिला मित्रो से उम्मीद करता हूँ वे अगले साल के उन्नीस नवम्बर को फिर आने वाले पुरूष दिवस पर बधाईयाँ पोस्ट करना याद रखेगीं !