संजीव जैन's Album: Wall Photos

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मन में लालच और दिल बंजर
बस धन की होती खन-खन
आवाज वक्त की कौन सुने
बात प्रकृति की कौन कहे

शहरों के पटा हुआ जंगल
आबादी मिटा रहा वन-धन
पशुओं के घर बन चोर घुसे
कुदरत की मर्यादा तोड़ चले

स्थिति भयावह और जर्जर
वायु में में धुंआ जल में विष भर
मेघों की जगह अंधेरा धुंध घिरा
पेड़ो की जगह बस ठूंठ बचे

कटी हुयी शाखाओं से
मेघों को कौन बुलायेगा
वायु का विष अवशोषित कर
शुद्ध पवन कहाँ से आयेगा

जीवन पर हावी है संकट
मन ललचाये नव संसाधन
शुद्ध और निर्मल प्रकृति
ख्वाबों में ही शेष बची

बस गया मशीनों का जहान
प्रकृति से नाता तोड़-ताड़
जीवन तलाशते नव ग्रह पर
वसुधा को कर बर्बाद चले

पेड़ों बिन भूमि है निर्जन
जीवन की उम्मीदे तहस-नहस
आओ कुदरत के मित्र बने
हरियाली से नाता जोड़े

जीवन रक्षा की करें पहल
सज जाये पुनः बाग-उपवन
हरित-क्रान्ति फिर से लाएं
आओ प्रकृति की ओर चलें

✍ #रागिनीप्रीत