" ये बदसलूकी क्यों
मेरे ही पतंग से
काटनी ही थी डोर तो
काटती जरा ढंग से
कहां गिड़ रहा हूं
पता है तुम्हे
लोग दौड़े हैं
नजरें गड़ाए हुए
तुमने देखी नहीं
हाथ सेकी नहीं
कुछ को धागा मिला
इक अभागा मिला
तुमको भी कुछ मिला
है पता सब मुझे
मै गिड़ा जब पता है
सुकून तब मिला था
तू हंस रही थी
ताली बजाते
भी देखा तुझे मैं।।