"सांझ की व्यथा "सुनोजी..बाजार जा रहे हो देखना कहीं अरबी के पत्ते मिले तो लेते आना..
मिक्सी खराब पडी है आते हुए ठीक करवा लाना आजकल कालोनी में ठेले वाले सब्जी महंगी देते है... मंडी से लेते आना और हां देसी घी भी खत्म हो गया है... रास्ते में दूकान पडती है वो भी ले आना....बुजुर्ग बीबी अपने बुजुर्ग पति मोहन से बोली..
मोहन जी ने मोबाइल पर फेसबुक से आंखें उठाये बिना हुंकार भरी..हूं"
बीबी छत पर कपडे सुखाने के लिये सीढी चढते हुये बडबडाने लगी-कितनी बार कहा है सीढी ठीक करवा दो..बुढापे में छत पर जानें में कितनी मुश्किल होती है... ये नहीं होता कि छत पर जाकर कपडे ही डाल आये..
मोहन ने बात को अनसुना कर दिया कि यह तो रोज के तानें है..
फिर नीचे आकर बोली -सुनो जी, कूलरों में पानी भर दिया क्या कई रोज ही कह रही हूँ की जाले लगे हैं साफ कर दो पर तुमको फेसबुक से फुरसत मिल तब ना टायलेट जाते हो तो किसे फुरसत है कि पीछे झांक कर देख लो कि फ्लेश के बाद साफ हुया है कि नही..
मुझे तो महतरानी बना कर रख दिया है
मोहन ने बीबी के तानों से बचने के लिये मंडी जाने में ही भलाई समझी।
"सुनो जी, आते हुये घुटनों की दवाई लेते आना.. आजकल बहुत दर्द है। सब लिख लो। नहीं तो आधा सामान ही लाओगे..
मोहन ने स्कूटर स्टार्ट कर मंडी की तरफ रवानगी की।
वापसी पर खाली झोला देख वो चिल्ला पडी
"क्या हुया, खाली हाथ वापिस आ गये..
"मेरी पैंट की जेब में हजार बारह सौ रूपये थे कहाँ गये.. मोहन ने पुलसिया अंदाज में पूछा..
"अरे मैं बताना भूल गयी कल पंडित जी आये थे भागवत के लिये ग्यारह सौ मैंने तुम्हारी पैंट से निकाले थे..
"एक तो तुम्हारे धर्म कर्म से परेशान हूँ यहां पैंशन में घर चलाना मुश्किल हो रहा है और तुम दूनिया भर में दान करती फिर रही हो मेरी दस रु रोज की तम्बाकू तुम्हे फिजूलखर्ची दिखती है और पंडितो को दान में ग्यारह सौ रु दिये जा रहे है मोहन ने झल्लाते हुये कहा..
"देखो जी, मेरे धरम करम के काम में तुम दखलअंदाजी नहीं करोगे..
कम से कम बता तो देती कि तुमने पैंट से रुपये निकाले है...
एक तो पांच कि. मी. दूर मंडी गया और वहां कितनी शर्मिंदगी उठानी पडी सब्जी खरीदने बाद जेब में हाथ डाला तो पैसे नहीं।"
"जाते समय आप पैंट देख नहीं सकते थे सारी गलती मेरी ही है..
"तुमसे तो बहस करना ही बेकार है।"
"हां,हां मैं तो हूँ ही ऐसी..
मोहन झल्लाता हुया बाथरूम में घुस गया
आज दिन भर हम दोनों की कुट्टी हो गयी..
शाम हुई बीबी मोहन के पास आई-नाराज हो...देखो अब हम जवान तो रहे नही बूढे हो चले है बच्चे अपने अपने घरो वाले हो गये ..अब भूल चूक तो होती रहेगी ..ऐसे मे सहारा और रुठना मनाना हमें खुद ही करना है तो...कहकर मोहन के गले लगकर रो पडी ..मोहन भी बीबी के गले लगकर रोने लगा ..और फिर एकदूसरे को रोटियां खिलाते चुप कराने लगे....
दोस्तों यही है बुढापे मे सांझ की व्यथा...