इंसान पर संगत का बड़ा प्रभाव होता है अच्छी या बुरी संगत का फल भोगना ही पड़ता है..
एक बार एक भंवरे की मित्रता एक गोबरी कीड़े के साथ हो गई मित्रता के कुछ समय बाद उस कीड़े ने भंवरे से कहा कि भाई तुम मेरे सबसे अच्छे मित्र हो इस लिये मेरे यहाँ भोजन पर आओ
अब अगले दिन भंवरा सुबह सुबह तैयार हो गया और अपने बच्चो के साथ गोबरी कीड़े के यहाँ भोजन के लिये पहुँचा
कीड़ा भी उन को देखकर बहुत खुश हुवा और सब का आदर करके भोजन परोसा
भोजन में गोबर की गोलियां परोसी गई और कीड़े ने कहा कि खाओ भाई रुक क्यों गए
मित्रो कीड़े के लिये वो ही पकवान थे और उसने बड़े मन से खाये पर भंवरा सोच में पड़ गया कि मैने बुरे का संग किया इस लिये मुझे तो गोबर खाना ही पड़ा पर मेरे बच्चे भी नही बचे..
पर भंवरा ने सोचा की ये मुझे इस का संग करने से मिला और फल भी पाया अब इस को भी मेरे संग का फल मिलना चाहिये..
भंवरा बोला भाई आज तो में आप के यहाँ भोजन के लिये आया अब तुम कल मेरे यहाँ आओगे..
अगले दिन कीड़ा तैयार होकर भंवरे के यहाँ पहुँचा ,भवरे ने कीड़े को उठा कर गुलाब के फूल में बिठा दिया और रस पिलाया भवरे ने खूब फूलो का रस पिया और मजे किये अपने मित्र का धन्यवाद किया और कहाँ मित्र तुम तो बहुत अच्छी जगह रहते हो और अच्छा खाते हो..
इस के बाद कीड़े ने सोचा क्यों न अब में यही रहू और ये सोच कर यही फूल में बैठा रहा इतने में ही पास के मंदिर का पुजारी आया और फूल तोड़ कर ले गया और चढ़ा दिया इस को बिहारी जी और सर्वेश्वरी राधा जी के चरणों में..
कीड़े को भगवन के दर्शन भी हुवे और उनके चरणों में बैठा इस के बाद सन्ध्या में पुजारी ने सारे फूल इक्कठा किये और गंगा जी में छोड़ दिए कीड़ा गंगा की लहरों पर लहर रहा था और अपनी किस्मत पर हैरान था कि कितना पूण्य हो गया इतने में ही भंवरा उड़ता हुवा कीड़े के पास आया और बोला की मित्र अब बताओ क्या हाल है कीड़े ने बोला भाई अब जन्म जन्म के पापो से मुक्ति हो चुकी है जहाँ गंगा जी में मरने के बाद अस्थियो को छोड़ा जाता है वहाँ में जिन्दा ही आ गया हूं ये सब मुझे तेरी मित्रता और अछि संगत का ही फल मिला है और ख़ुशी से नीहाल हु तेरा धन्यवाद जिस को में अपनी जन्नत समझता था वो गन्दगी थी और जो तेरी वजय से मिला ये ही स्वर्ग है..
मित्रों इस कहानी का तातपर्य यह है कि बुरे का संग नहीँ करे उससे हमें भी बुराई ही मिलेगी उसका फल हमें भोगना पड़ेगा..
और अच्छे का संग अवश्य करें क्योकि न जाने इसकी कोन सी आदत हमें इस भव सागर से परे कर दे