संजीव जैन's Album: Wall Photos

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हर दिन की तरह वो दिन भी के.जयगणेश के लिए एक आम दिन था, होटल में सबका आर्डर लेना, खाना परोसना, टेबल साफ़ करवाना, इत्यादि। जयगणेश रोज़ की तरह अपना काम कर रहे थे कि तभी एक दोस्त ने आ कर उनको ऐसी बात बताई कि वो अचंभित रह गए, उनकी आँखों में ख़ुशी के आँसू आ गए और चेहरे पर सफलता की मुस्कान बिखर गई। दोस्त ने आ कर उन्हें बताया कि वो अब वेटर नहीं रहे, वो आईएएस अफसर बन गए हैं। जयगणेश, जो कभी दूसरों का आर्डर लेते थे, अब आर्डर देने वाले एक आईएएस अफसर बन चुके थे, अपनी गरीबी और मेहनत के दिनों को याद कर के वो रो पड़े।

तमिलनाडु के उत्तरी अम्बर के पास स्थित एक छोटे से गाँव के बेहद ग़रीब परिवार में जन्मे जयगणेश अपने चार भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। उनके पिता एक कारखाने में मज़दूरी करते थे और किसी तरह परिवार का पेट पालते थे। जयगणेश शुरू से ही पढ़ाई में बहुत अच्छे थे, उन्होंने 12वीं कक्षा में 91 प्रतिशत अंक प्राप्त किये थे। अच्छे प्रतिशत से इंटरमीडिएट पास होने पर उनके पिता को लगा कि बेटा उनकी गरीबी को दूर कर सकता है, परिवार के दिन फेर सकता है। पिता ने इधर-उधर से क़र्ज़ लेकर के.जयगणेश का दाखिला तांथी पेरियर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में कराया, जहाँ उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उनकी नौकरी एक कंपनी में लगी, जहाँ उन्हें हर महीने 2500 रुपये मिलने लगे।

जयगणेश को पता था कि 2500 रुपये से वो अपने परिवार की कोई मदद नहीं कर सकते, उन्हें ये बात समझ में आ चुकी थी कि इस नौकरी के सहारे उनका और उनके परिवार का गुज़ारा नहीं हो पाएगा। उनका गाँव भी बहुत गरीब था, वो अपने गाँव के लिए भी बहुत कुछ करना चाहते थे। इसके लिए अच्छा सरकारी ओहदा पाना जरूरी था। उनके मन में ये विचार आया कि क्यों ना प्रशासनिक सेवाओं(Civil Services) की तैयारी की जाए। इसके चलते जयगणेश एक होटल में वेटर की नौकरी करने लगे, ताकि कुछ पैसे मिलें तो आईएएस की तैयारी जारी रखने के साथ परिवार की भी मदद कर सकें। वो दिन में वेटर की नौकरी करते और रात में घर जाकर पढ़ाई करते थे।

जयगणेश ने ज़ोर-शोर से पढ़ाई शुरू कर दी और इसकी परीक्षा भी दी, लेकिन हर बार वो असफल ही रहे। उन्होंने 6 बार प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षा दी पर कामयाबी नहीं मिली, इसी दौरान उन्होंने इंटेलीजेंस ब्यूरो की परीक्षा दी और उसमें सफल भी हो गए। अब उनके सामने एक विकट समस्या खड़ी हो गई थी, वो समझ नहीं पा रहे थे कि इंटेलीजेंस ब्यूरो की नौकरी करें या फिर 7वीं बार प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षा दें।

अंत में उन्होंने निर्णय लिया की वो नौकरी नहीं करेंगे बल्कि अपनी तैयारी आगे जारी रखेंगे। उन्होंने सातवीं बार परीक्षा दी और इस बार ऐसा कुछ हुआ, जिसपर यकीन करना हर किसी के लिए मुश्किल था। वेटर की नौकरी करने वाले के.जयगणेश का नाम सफल अभ्यर्थियों की ऑल इंडिया रैकिंग में 156वें नंबर पर था। उनकी मेहनत रंग लायी थी, खुद पर विश्वास और निरंतर मेहनत ही उनकी सफलता के सबसे बड़े कारण बने। उनकी कहानी बताती है कि यदि हम ख़ुद पर विश्वास रखकर किसी चीज़ के लिए मेहनत करें तो सफलता ज़रूर हमारे कदम चूमेगी।