संजीव जैन's Album: Wall Photos

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गणतंत्र आज मर्माहत है
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है यत्र-तत्र बिखरा-बिखरा,
शव जैसा कुछ अकड़ा-अकड़ा ।
बस चौराहे का मुद्दा है,
गणतंत्र आज शर्मिंदा है ।

रखवाले तो बहुतेरे हैं,
फिर भी संशय के घेरे हैं ।
इसका उसका यह किसका है,
बस मेरा या यह सबका है ?

उपमायें सारी बदल गयी,
मर्यादा सारी निकल गयी ।
शक्ति का मात्र पर्याय नहीं,
गणतंत्र का यह अध्याय नहीं ।

मंदिर, मस्जिद का खेला है,
नित जाति-धर्म का रेला है ।
खेमा-खेमा में मुल्क खड़ा,
है फसाद यह की कौन बड़ा ।

जनहित की बातें गौण हुयी,
भ्रम जाल में जनता मौन हुयी ।
मन राष्ट्रवाद में उलझा है,
यह प्रश्न आज अनसुलझा है ।

जो आजादी के नायक थे,
कटघरे में उनकी अस्मत है ।
अब संविधान के मूल्यों की,
होती नित तोड़-मरम्मत है ।

जन का, जन हित में, जन द्वारा,
यह लोकतंत्र की मर्यादा ।
जन छूट रहा है शासन में,
वह बना रह गया बस प्यादा ।

सब रचते अपनी परिभाषा,
धन बल से प्रेरित अभिलाषा ‌।
शब्दों से रचते हैं बिसात,
बाँटे नफरत जैसे सौगात ।

सत्ता पाने का मात्र तंत्र,
ताकत पाने का मूल मंत्र ।
खुद को खोकर यह आहत है,
गणतंत्र आज मर्माहत है ।

✍ रागिनी प्रीत