संजीव जैन's Album: Wall Photos

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आलोक शर्मा द्वारा लिखित आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज श्री के चरणों में भक्तिसुमन

दिगंबर सन्यासी ।
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1-तुम अदभुत,
दिगंबर सन्यासी,
जैसे अंदर,
वैसे बाहर,
हम ढंके हैं,
कपडों से,
बाहर योद्धा,
अंदर कायर।

2-तप तुम्हारा,
अदभुत है,
हम नहीं,
कर पाएंगे,
औरों की खातिर,
भ्रमण पथ पर,
कभी नहीं,
हम जाएंगे।

3-तुम तपसी,
तप सकते हो,
तपो अकेले,
चलो अकेले,
मोक्षः मिले तो,
हमें भी देना,
हमारे लिए,
दुनिया के मेले।

4-एक पिच्छी,
एक कमंडल,
संपत्ति तुम्हारी,
इतनी है,
भर सकता,
आकाश भी,
चाहत हमारी,
जितनी है।

5-तुम मुक्त,
हर बंधन से,
प्रतिदिन के,
क्रंदन से,
नमन तुम्हे,
जब करता हूँ
पुण्यों की झोली,
भरता हूँ।

6-समस्त आकाश,
वस्त्र तुम्हारा,
और बिछौना,
धरती है,
हर कदम,
साथ तुम्हारे,
खुद प्रकृति,
नर्तन करती है।

7-तुम सहज,
सागर हो जैसे,
मार्गदर्शक,
जीवन के ऐसे,
बस मुस्कुराओ,
झोली भरदो,
एक आर्शीवाद से,
अमर करदो।

आलोक शर्मा।31-05-17