संजीव जैन's Album: Wall Photos

Photo 2,316 of 15,060 in Wall Photos

मनोवैज्ञानिक कहते हैं,......

दो तरह के लोग होते हैं। एक तो वे लोग, सुबह जिनकी चेतना बहुत प्रखर होती है और सांझ होते-होते धूमिल हो जाती है। दूसरे वे लोग, सुबह जिनकी चेतना धूमिल होती है और सांझ होते-होते प्रखर हो जाती है। इनमें बड़ा फासला होगा। इनमें ताल-मेल बिठाना मुश्किल होता है। जिस व्यक्ति की चेतना सजग होती है, वह जल्दी उठ आएगा। ब्रह्ममुहूर्त में उठ आएगा। जितना जल्दी सुबह उठेगा, उतना दिन-भर ताजा रहेगा! उसके जीवन की सबसे गहन घड़ी सुबह ही होनेवाली है। सूरज को उगते देखेगा, पक्षियों के गीत सुनेगा, वृक्षों की हरियाली देखेगा। प्रभात बाहर ही नहीं होता, उसके भीतर भी होता है। और वह इतना जाग्रत होता है सुबह कि वह उस घड़ी को चूक नहीं सकता। ऐसे ही लोगों ने ब्रह्ममुहूर्त में उठने की बात कही होगी।

लेकिन कुछ लोग हैं, जिनको अगर तुम सुबह जल्दी उठा लो, तुमने उनका दिनभर मार दिया, दिन-भर खराब कर दिया। फिर वे दिन-भर उदास और खिन्न मन रहेंगे। उखड़े-उखड़े, टूटे-टूटे, बिखरे-बिखरे, खंड-खंड। दिन-भर उन्हें लगेगा कि कुछ चूक गए, कहीं कुछ कमी रह गयी! सांझ होते-होते ऐसे लोग प्रखर होते हैं चैतन्य में। ऐसे ही लोग सांझ को क्लब-घरों में इकट्ठे होते हैं,नाचते हैं, गाते हैं रात देर तक गपशप करते हैं। आधी रात हो जाए तभी सो सकते हैं, उसके पहले नहीं सो सकते! उनके चैतन्य की घड़ी रात में आती है। संध्या के साथ उनका वास्तविक जीवन शुरू होता है। चांद के उगने के साथ उनके भीतर कुछ उगता है। या आकाश जब तारों से भर जाता है तब उनकी चेतना सघन होती है।

तुम गौर करना, तुम भी यह पाओगे! और जो सुबह ज्यादा सजग होते हैं, वे सांझ बारह घंटे के बाद, ठीक उल्टे छोर पर पहुंच जाते हैं। और जो सांझ सजग होते हैं, वे सुबह बारह घंटे के बाद ठीक उल्टे छोर पर पहुंच जाते हैं। तुम्हारे भीतर एक वर्तुल है। जब तुम्हारी चैतन्य की घड़ी खूब प्रखर होती है तब तुम जो भी करोगे वह शुभ होगा, तब तुम जो भी करोगे सफल होओगे! क्योंकि तुम्हारी पूरी प्रतिभा उसमें संलग्न होगी।

प्रत्येक व्यक्ति को अपनी श्रद्धा का क्षण खोजना चाहिए। वही उसकी प्रार्थना का और ध्यान का क्षण है। लोग मुझसे पूछते हैं, हम ध्यान कब करें? ऊपर से कोई चीज थोपी नहीं जा सकती। तुम्हें खोजना होगा! और अगर तुम एक तीन सप्ताह निरीक्षण करोगे तो तुम पा लोगे, तीन सप्ताह डायरी में लिखते चले जाओ--कि चौबीस घंटे में तुम कब अच्छा अनुभव करते हो, कब बुरा अनुभव करते हो। और ध्यान रहे, अकसर तुम यह सोचते हो कि बुरा मैं इसलिए अनुभव कर रहा हूं कि फलां आदमी ने फलां बात कह दी, या ऐसा हो गया, या पत्नी आज प्रसन्न नहीं है इसलिए मैं जरा उदास हूं, कि बच्चे ने कुछ चीजें तोड़ दी हैं, कि बच्चा फेल हो गया है। नहीं; तुम अगर तीन सप्ताह नियमित रूप से विचार करते रहोगे, तुम पाओगे बाहर से कुछ फर्क नहीं पड़ता। तुम्हारे भीतर ही कुछ घट रहा है।

और जल्दी ही तुम सूत्र पकड़ लोगे और जो घड़ी तुम्हारे भीतर सर्वाधिक चैतन्य की हो, वही प्रार्थना की घड़ी है। सबकी अलग-अलग होगी। प्रत्येक की अपनी-अपनी होगी। और जो घड़ी तुम्हारे भीतर सबसे उदासी की घड़ी हो, सबसे खिन्न होने की घड़ी हो, उस घड़ी में द्वार-दरवाजे बंद करके बिस्तर में पड़ रहना। उस घड़ी में बाहर जाना भी खतरनाक है, किसी से बात करना भी बुरा है। उस घड़ी में कुछ न कुछ बुरा हो जाएगा। तुम कुछ बात कह दोगे जो खटक जाएगी और जिसके लिए तुम पीछे पछताओगे। तुम्हारी खिन्न घड़ी में क्रोध आसान होगा, करुणा कठिन होगी। और तुम्हारी प्रफुल्ल घड़ी में करुणा आसान होगी, क्रोध कठिन होगा।

ओशो
ज्‍योत से ज्‍योत जले