किस राजा ने दांव लगाया
किस शकुनि ने फेंके पासे
किस देवर ने चीर उघाड़ा
कौन ससुर हो गए रुआंसे
इन प्रश्नों में मत उलझाओ, चीरहरण के वादी सब हैं
लड़ते रहना महासमर अब, पर सचमुच अपराधी सब हैं
दुर्योधन के कान कहेंगे, हमने इक उपहास सहा था
सूतपुत्र ने जातित्रास का, दहता सा संत्रास सहा था
भीष्म बंधे थे सिंहासन से, दुःशासन मद में ऐंठे थे
द्रोण द्रुपद से अपमानित थे, पाण्डव दास हुए बैठे थे
तार-तार होती लज्जा से, मौन-मुखर संवादी सब हैं
लड़ते रहना महासमर अब, पर सचमुच अपराधी सब हैं
शांतनु-से कामुक पुरखे का कोई पिछला पाप फला हो
सम्भव है कुलश्रेष्ठ भीष्म को, अम्बा का अभिशाप फला हो
जाने कब किस दुःशासन ने, किसके कुल की लाज घसीटी
जाने कब किस राजभवन में, किस कामी ने जंघा पीटी
अवसर मिलने पर अपराधी हो जाने के आदी सब हैं
लड़ते रहना महासमर अब, पर सच में अपराधी सब हैं