यह जो तुम्हारी शैय्या है यह हमारे पलंगों पर ऋण है....
यह जो तुम्हारी निद्रा है, यह हमारी निष्कंटक निद्रा पर ऋण है......
तुम्हारी जो माताएं हैं वह हमारे मातृत्व पर ऋण हैं......
तुम्हारे जो बच्चे होंगे वह हमारे समाज पर ऋण हैं......
कैसे चुकेगा यह ऋण !
कैसे होंगे हम उऋण तुमसे !